https://youtu.be/WdQRvfMfwWM
अपनी तबाहियों का किसी से गिला नहीं
ये वारदात सिर्फ मेरा वाक़या नहीं
इस शहर के हुजूम में गुम हो गए हैं लोग
आवाज़ दे रही हूँ कोई बोलता नहीं
हमने फ़िराक-ए-यार में घड़ियाँ गुज़ार दी
इस मरहले के बाद कोई मरहला नहीं
ये आपका है हुक्म तो अच्छा यूँही सही
तर्के-तअल्लुकात मेरा मुद्दआ नहीं
यूँ खो गई हूँ रंज-ओ-अलम के गुबार में
मंजिल तो सामने है मगर रास्ता नहीं
*
(वाक़या = घटना / फ़िराक = वियोग, विरह /
मरहला = समस्या / रंज-ओ-अलम = दुःख, पीड़ा)
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