https://youtu.be/xaoOTKu0DSI
नमामि शम्भुं पुरुषं पुराणं नमामि सर्वज्ञमपारभावम् । नमामि रुद्रं प्रभुमक्षयं तं नमामि शर्वं शिरसा नमामि ॥१॥
कहीं पार या अन्त नहीं है, उन सर्वज्ञ शिव को मैं प्रणाम करता हूँ।
अविनाशी प्रभु रुद्र को नमस्कार करता हूँ। सबका संहार करने वाले
शर्व को मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ।
नमामि देवं परमव्ययंतं उमापतिं लोकगुरुं नमामि । नमामि दारिद्रविदारणं तं नमामि रोगापहरं नमामि ॥२॥
करता हूँ। दरिद्रता को विदीर्ण करने वाले शिव को नमस्कार करता हूँ।
रोगों का विनाश करने वाले महेश्वर को प्रणाम करता हूँ।
नमामि कल्याणमचिन्त्यरूपं नमामि विश्वोद्ध्वबीजरूपम् । नमामि विश्वस्थितिकारणं तं नमामि संहारकरं नमामि ॥३॥
करता हूँ। विश्व की उत्पत्ति के बीजरूप भगवान भव को प्रणाम करता हूँ।
जगत का पालन करने वाले परमात्मा को नमस्कार करता हूँ। संहारकारी
रुद्र को नमस्कार करता हूँ, नमस्कार करता हूँ।
नमामि गौरीप्रियमव्ययं तं नमामि नित्यंक्षरमक्षरं तम् । नमामि चिद्रूपममेयभावं त्रिलोचनं तं शिरसा नमामि ॥४॥
नित्यक्षर-अक्षरस्वरूप शंकर को प्रणाम करता हूँ। जिनका स्वरूप चिन्मय
है और अप्रमेय है, उन भगवान त्रिलोचन को मैं मस्तक झुकाकर बारम्बार
नमस्कार करता हूँ।
नमामि कारुण्यकरं भवस्या भयंकरं वापि सदा नमामि । नमामि दातारमभीप्सितानां नमामि सोमेशमुमेशमादौ ॥५॥
वाले भगवान भूतनाथ को सर्वदा नमस्कार करता हुँ। मनोवांछित फलों के दाता
महेशवर को प्रणाम करता हूँ। भगवती उमा के स्वामी श्रीसोमनाथ को नमस्कार
करता हूँ।
नमामि वेदत्रयलोचनं तं नमामि मूर्तित्रयवर्जितं तम् । नमामि पुण्यं सदसद्व्यातीतं नमामि तं पापहरं नमामि ॥६॥
से रहित सदाशिव को नमस्कार करता हूँ। पुण्यमय शिव को प्रणाम करता हूँ।
सत्-असत् से पृथक् परमात्मा को नमस्कार करता हूँ। पापों को नष्ट करने वाले
भगवान हर को प्रणाम करता हूँ।
नमामि विश्वस्य हिते रतं तं नमामि रूपापि बहुनि धत्ते । यो विश्वगोप्ता सदसत्प्रणेता नमामि तं विश्वपतिं नमामि ॥७॥
को मैं प्रणाम करता हूँ। जो संसार के रक्षक तथा सत् और असत् के निर्माता हैं,
उन विश्वपति (भगवान् विश्वनाथ ) को मैं नमस्कार करता हूँ, नमस्कार करता हूँ।
यज्ञेश्वरं सम्प्रति हव्यकव्यं तथागतिं लोकसदाशिवो यः । आराधितो यश्च ददाति सर्वं नमामि दानप्रियमिष्टदेवम् ॥८॥
कल्याण करने वाले जो भगवान शिव आराधना करने पर उत्तम गति एवं
सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुएँ प्रदान करते हैं, उन दानप्रिय इष्टदेव को मैं नमस्कार
करता हूँ।
नमामि सोमेश्वरंस्वतन्त्रं उमापतिं तं विजयं नमामि । नमामि विघ्नेश्वरनन्दिनाथं पुत्रप्रियं तं शिरसा नमामि ॥९॥
रहते हैं, उन विजयशील उमानाथ को मैं नमस्कार करता हूँ। विघ्नराज गणेश
तथा नन्दी के स्वामी पुत्रप्रिय भगवान् शिव को मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम
करता हूँ।
नमामि देवं भवदुःखशोक विनाशनं चन्द्रधरं नमामि । नमामि गंगाधरमीशमीड्यं उमाधवं देववरं नमामि ॥१०॥
मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ। जो स्तुति करने योग्य और मस्तक पर गंगा जी
को धारण करने वाले हैं, उन महेश्वर को नमस्कार करता हूँ। देवताओं में श्रेष्ठ
उमापति को प्रणाम करता हूँ।
नमाम्यजादीशपुरन्दरादि सुरासुरैरर्चितपादपद्मम् । नमामि देवीमुखवादनानां ईक्षार्थमक्षित्रितयं य ऐच्छत् ॥११॥
करता हूँ। जिन्होंने पार्वतीदेवी के मुख से निकलने वाले वचनों पर दृष्टिपात करने
की इच्छा से मानो तीन नेत्र धारण कर रखे हैं, उन भगवान को प्रणाम करता हूँ।
पंचामृतैर्गन्धसुधूपदीपैः
विचित्रपुष्पैर्विविधैश्च मन्त्रैः । अन्नप्रकारैः सकलोपचारैः सम्पूजितं सोममहं नमामि ॥१२॥
समस्त उपचारों से पूजित भगवान सोम को में नमस्कार करता हूँ।
॥ इति श्रीब्रह्ममहापुराणे शम्भुस्तुतिः सम्पूर्णा॥
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