https://youtu.be/6ihJfx7m7nc
गांधर्व मंडल के संस्थापक महान संगीतज्ञ, आचार्य पं. विष्णू दिगंबर जी पलुस्कर ने
"जय जगदीश हरे" इस भजन की स्वररचना की है | पं. पलुस्कर जी के ज्येष्ठ शिष्य
पं. नारायणराव व्यास , प्रो. बी. आर. देवधर आदि गायकों ने इस प्रार्थना गीत को गा
कर लोकप्रिय किया है ।
यही प्रार्थना गीत यहाँ पर नंदिनी एवं अंजली ने गाने का प्रयास किया है। गीत का प्रारंभ
एक श्लोक से किया गया है जिसकी रचना अंगद गायकवाड़ ने नंद राग में करने का
प्रयास किया है।
"जय जगदीश हरे" इस भजन की स्वररचना की है | पं. पलुस्कर जी के ज्येष्ठ शिष्य
पं. नारायणराव व्यास , प्रो. बी. आर. देवधर आदि गायकों ने इस प्रार्थना गीत को गा
कर लोकप्रिय किया है ।
यही प्रार्थना गीत यहाँ पर नंदिनी एवं अंजली ने गाने का प्रयास किया है। गीत का प्रारंभ
एक श्लोक से किया गया है जिसकी रचना अंगद गायकवाड़ ने नंद राग में करने का
प्रयास किया है।
शुकरहस्योपनिषद्
जो सदा ही आनन्दरूप, श्रेष्ठ सुखदायी स्वरूप वाले, ज्ञान के
साक्षात् विग्रह रूप हैं। जो संसार के द्वन्द्वों (सुख-दुःखादि) से
रहित, व्यापक आकाश के सदृश (निर्लिप्त) है तथा जो एक ही
परमात्म तत्त्व को सदैव लक्ष्य किये रहते हैं। जो एक हैं, नित्य हैं,
सदैव शुद्ध स्वरूप है, ( झंझावातों में) अचल रहने वाले, सबकी
बुद्धि में अधिष्ठित, सब प्राणियों के साक्षिरूप, राग-आसक्ति
आदि भयों से दूर, लोभ, मोह, अहंकार जैसे सामान्य त्रिगुणों से
रहित हैं, उन सद्गुरु को हम नमस्कार करते हैं।
साक्षात् विग्रह रूप हैं। जो संसार के द्वन्द्वों (सुख-दुःखादि) से
रहित, व्यापक आकाश के सदृश (निर्लिप्त) है तथा जो एक ही
परमात्म तत्त्व को सदैव लक्ष्य किये रहते हैं। जो एक हैं, नित्य हैं,
सदैव शुद्ध स्वरूप है, ( झंझावातों में) अचल रहने वाले, सबकी
बुद्धि में अधिष्ठित, सब प्राणियों के साक्षिरूप, राग-आसक्ति
आदि भयों से दूर, लोभ, मोह, अहंकार जैसे सामान्य त्रिगुणों से
रहित हैं, उन सद्गुरु को हम नमस्कार करते हैं।
जय जगदीश हरे,
जय जगदीश हरे।
भक्त जनों का संकट, छिन में
भक्त जनों का संकट, छिन में
भक्त जनों का संकट, छिन में
दूर करे॥
जो ध्यावे फल पावे,
दुःख विनसे मन का ॥
जय जगदीश हरे,
जय जगदीश हरे।
सुख सम्पत्ति गृह आवे,
सुख सम्पत्ति गृह आवे,
कष्ट मिटे तन का।
माता-पिता तुम मेरे,
शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा,
आस करूं जिसकी॥
सुख सम्पत्ति गृह आवे,
कष्ट मिटे तन का।
माता-पिता तुम मेरे,
शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा,
आस करूं जिसकी॥
जय जगदीश हरे,
जय जगदीश हरे।।
तुम पूरण परमात्मा,
तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर,
तुम सबके स्वामी॥
तुम करुणा के सागर,
तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी,
कृपा करो भर्ता॥
जय जगदीश हरे, जय जगदीश हरे।
तुम हो एक अगोचर,
सबके प्राणपति।
तुम हो एक अगोचर,
सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं गुसाईं,
तुमको मैं कुमति॥
दीनबन्धु दुखहर्ता,
ठाकुर तुम मेरो।
अपने हाथ उठाओ,
द्वार पड्यो तेरो॥
विषय-विकार मिटाओ,
पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ,
संतन की सेवा॥
जय जगदीश हरे,
जय जगदीश हरे।
सबके प्राणपति।
तुम हो एक अगोचर,
सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं गुसाईं,
तुमको मैं कुमति॥
दीनबन्धु दुखहर्ता,
ठाकुर तुम मेरो।
अपने हाथ उठाओ,
द्वार पड्यो तेरो॥
विषय-विकार मिटाओ,
पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ,
संतन की सेवा॥
जय जगदीश हरे,
जय जगदीश हरे।
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