बुधवार, 20 जुलाई 2022

कचौड़ी गली सून कइला बलमू .../ मिर्जापुरी कजरी / रचना : गौहर जान / गायन : संजोली पाण्डेय

https://youtu.be/jHbkaDManXc  

'कचौड़ी गली सून कइला बलमू' एक प्रसिद्द कजरी है। कहा जाता है कि, इसकी रचना अपने समय की मशहूर गायिका गौहर जान द्वारा अपने एक क्रन्तिकारी प्रेमी की याद में की गई है जो अंग्रेजों द्वारा मिर्ज़ापुर से पकड़ कर रंगून निर्वासित कर दिया गया था। गौहर के उस प्रेमी का नाम 'नागर' बताया जाता है जो पहले कचौड़ी गली बनारस में रहता था पर अंग्रेजों को पता चल जाने के कारण छिपने के लिए मिर्ज़ापुर आ गया था जहाँ उन दिनों गौहर जान रहा करती थीं। कहीं-कहीं प्रेमी का नाम असलम भी मिलता है। इस कजरी को बहुत सारे गायकों और गायिकाओं ने गाया है। 

गौहर जान (जन्म- 26 जून1873आजमगढ़; मृत्यु- 17 जनवरी1930) भारतीय गायिका और नर्तकी थीं। वे दक्षिण एशिया की पहली गायिका थीं, जिनके गाने ग्रामाफोन कंपनी ने रिकॉर्ड किए थे। रिकॉर्डिंग 1902 में हुई थी और उनके गानों की बदौलत ही भारत में ग्रामोफोन को लोप्रियता हासिल हुई। गौहर जान ने 1902 से 1920 के बीच बंगाली, हिन्‍दुस्‍तानी, गुजरातीतमिलमराठीअरबीफ़ारसी, पश्‍तो, फ्रेंच और अंग्रेज़ी समेत 10 से भी ज्‍यादा भाषाओं में 600 से भी अधिक गाने रिकॉर्ड किए। गौहर जान ने अपनी ठुमरी, दादरा, कजरी, चैती, भजन और तराना के जरिए हिन्‍दुस्‍तानी शास्‍त्रीय संगीत को दूर-दूर तक पहुंचाया।
गौहर जान का जन्म 26 जून, 1873 ई. में एक क्रिश्चियन परिवार में हुआ था और पहले उनका नाम एंजलिना था। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में जन्मीं गौहर के दादा ब्रिटिश थे तो उनकी दादी हिन्दू थीं। गौहर जान के पिता अर्मेनियन थे और मां विक्टोरिया जन्म से भारतीय थीं तथा एक प्रशिक्षित नृत्यांगना और गायिका थीं। अपने पति से तलाक होने के बाद विक्टोरिया अपनी 8 साल की बच्ची एंजलिना को लेकर बनारस चली गई थीं, जहां उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया और अपना नाम रखा 'मलका जान'। मां के साथ साथ गौहर का भी धर्म बदला गया और वह एंजलिना से गौहर जान बन गईं। तत्कालीन समय में गौहर की माँ मलका जान स्‍थापित गायिका और नृत्‍यांगना बन चुकी थीं। उन्‍हें लोग 'बड़ी मलका जान' के नाम से जानते थे। 1883 में मलका जान कलकत्ता में नवाब वाजिद अ‍ली शाह के दरबार में नियुक्‍त हो गईं। एंजलिना से गौहर बनने वालीं इस कलाकार का अधिकतर काम कृष्ण भक्ति पर है। बनारस से दोनों माँ-बेटी कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) चले गए, जहां गौहर ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू किया। 1887 से अपनी यात्रा शुरू करने के बाद 19वीं सदी तक वह प्रसिद्ध हो गईं। 

संजोली पाण्डेय फैज़ाबाद के छोटे से गाँव रामपुर की रहने वाली संजोली पाण्डेय (23 वर्ष) बचपन से ही भोजपुरी और अवधी गीत गाती हैं। आज संजोली एक लोकगायिका के नाम से जानी जाती हैं। वह अपने लोकगीतों के माध्यम से समाज को जाग्रत करने का प्रयास कर रही हैं। भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा, लड़कियों की शिक्षा, किसानों के लिए गाना गाना उसे पसंद है और वो खुद भी गीत लिखती हैं।

सेजिया पे लोटे काला नाग हो

कचौड़ी गली सून कइला बलमू
सेजिया पे लोटे काला नाग हो
कचौड़ी गली सून कइला बलमू
सून कइला बलमू… सून कइला बलमू…
सून कइला बलमू… सून कइला बलमू…
मिर्जापुर कईला गुलजार हो
कचौड़ी गली सून कइला बलमू
मिर्जापुर कईला गुलजार हो
कचौड़ी गली सून कइला बलमू

एही मिर्जापुर से चले ले जहजिया…. होए
एही मिर्जापुर से चले ले जहजिया
चले ले जहजिया हो गोंईया, चले ले जहजिया…
चले ले जहजिया हो गोंईया, चले ले जहजिया…
सईयां चल गइलें रंगून हो
सईयां चल गइलें रंगून हो
कचौड़ी गली सून कइला बलमू
सेजिया पे लोटे काला नाग हो
कचौड़ी गली सून कइला बलमू

पनवा से पातर भईल तोहर धनिया
भईल तोर धनिया हों गोंईया…
भईल तोहर धनिया
भईल तोर धनिया हो रामा…
भईल तोहर धनिया
देहिया गलेला जाईसे नून हो
कचौड़ी गली सून कइला बलमू
सेजिया पे लोटे काला नाग हो
कचौड़ी गली सून कइला बलमू

हथवा में होत जो हमारे कटरिया… हाय
हमारे कटरिया हो रामा
हथवा में होत जो हमारे कटरिया… रामा
हमारे कटरिया…
तो  देती गोरवन के खून हो
कइ देती गोरवन के खून हो
कचौड़ी गली सून कइला बलमू
सेजिया पे लोटे काला नाग हो
कचौड़ी गली सून कइला बलमू

सून कइला बलमू… सून कइला बलमू…
सून कइला बलमू… सून कइला बलमू…
मिर्जापुर कईला गुलजार हो
कचौड़ी गली सून कइला बलमू
सेजिया पे लोटे काला नाग हो
कचौड़ी गली सून कइला बलमू

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