https://youtu.be/2u-k_W0sK9c
॥ श्री चिदम्बरेश्वर स्तोत्रम् ॥
कृपासमुद्रं सुमुखं त्रिनेत्रं
जटाधरं पार्वतीवामभागम् ।
सदाशिवं रुद्रमनन्तरूपं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ १ ॥
जटाधरं पार्वतीवामभागम् ।
सदाशिवं रुद्रमनन्तरूपं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ १ ॥
वाचामतीतं फणिभूषणाङ्गं
गणेशतातं धनदस्य मित्रम् ।
कन्दर्पनाशं कमलोत्पलाक्षं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ २ ॥
गणेशतातं धनदस्य मित्रम् ।
कन्दर्पनाशं कमलोत्पलाक्षं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ २ ॥
रमेशवन्द्यं रजताद्रिनाथं
श्रीवामदेवं भवदुःखनाशम् ।
रक्षाकरं राक्षसपीडितानां
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ ३ ॥
श्रीवामदेवं भवदुःखनाशम् ।
रक्षाकरं राक्षसपीडितानां
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ ३ ॥
देवादिदेवं जगदेकनाथं
देवेशवन्द्यं शशिखण्डचूडम् ।
गौरीसमेतं कृतविघ्नदक्षं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ ४ ॥
देवेशवन्द्यं शशिखण्डचूडम् ।
गौरीसमेतं कृतविघ्नदक्षं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ ४ ॥
वेदान्तवेद्यं सुरवैरिविघ्नं
शुभप्रदं भक्तिमदन्तराणाम् ।
कालान्तकं श्रीकरुणाकटाक्षं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ ५ ॥
शुभप्रदं भक्तिमदन्तराणाम् ।
कालान्तकं श्रीकरुणाकटाक्षं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ ५ ॥
हेमाद्रिचापं त्रिगुणात्मभावं
गुहात्मजं व्याघ्रपुरीशमाद्यम् ।
श्मशानवासं वृषवाहनस्थं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ ६ ॥
गुहात्मजं व्याघ्रपुरीशमाद्यम् ।
श्मशानवासं वृषवाहनस्थं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ ६ ॥
आद्यन्तशून्यं त्रिपुरारिमीशं
नन्दीशमुख्यस्तुतवैभवाढ्यम् ।
समस्तदेवैः परिपूजिताङ्घ्रिं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ ७ ॥
नन्दीशमुख्यस्तुतवैभवाढ्यम् ।
समस्तदेवैः परिपूजिताङ्घ्रिं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ ७ ॥
तमेव भान्तं ह्यनुभातिसर्व-
-मनेकरूपं परमार्थमेकम् ।
पिनाकपाणिं भवनाशहेतुं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ ८ ॥
-मनेकरूपं परमार्थमेकम् ।
पिनाकपाणिं भवनाशहेतुं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ ८ ॥
विश्वेश्वरं नित्यमनन्तमाद्यं
त्रिलोचनं चन्द्रकलावतंसम् ।
पतिं पशूनां हृदि सन्निविष्टं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ ९ ॥
त्रिलोचनं चन्द्रकलावतंसम् ।
पतिं पशूनां हृदि सन्निविष्टं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ ९ ॥
विश्वाधिकं विष्णुमुखैरुपास्यं
त्रिलोचनं पञ्चमुखं प्रसन्नम् ।
उमापतिं पापहरं प्रशान्तं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ १० ॥
त्रिलोचनं पञ्चमुखं प्रसन्नम् ।
उमापतिं पापहरं प्रशान्तं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ १० ॥
कर्पूरगात्रं कमनीयनेत्रं
कंसारिमित्रं कमलेन्दुवक्त्रम् ।
कन्दर्पगात्रं कमलेशमित्रं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ ११ ॥
कंसारिमित्रं कमलेन्दुवक्त्रम् ।
कन्दर्पगात्रं कमलेशमित्रं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ ११ ॥
विशालनेत्रं परिपूर्णगात्रं
गौरीकलत्रं हरिदम्बरेशम् ।
कुबेरमित्रं जगतः पवित्रं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ १२ ॥
गौरीकलत्रं हरिदम्बरेशम् ।
कुबेरमित्रं जगतः पवित्रं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ १२ ॥
कल्याणमूर्तिं कनकाद्रिचापं
कान्तासमाक्रान्तनिजार्धदेहम् ।
कपर्दिनं कामरिपुं पुरारिं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ १३ ॥
कान्तासमाक्रान्तनिजार्धदेहम् ।
कपर्दिनं कामरिपुं पुरारिं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ १३ ॥
कल्पान्तकालाहितचण्डनृत्तं
समस्तवेदान्तवचोनिगूढम् ।
अयुग्मनेत्रं गिरिजासहायं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ १४ ॥
समस्तवेदान्तवचोनिगूढम् ।
अयुग्मनेत्रं गिरिजासहायं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ १४ ॥
दिगम्बरं शङ्खसिताल्पहासं
कपालिनं शूलिनमप्रयेम् ।
नागात्मजावक्त्रपयोजसूर्यं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ १५ ॥
कपालिनं शूलिनमप्रयेम् ।
नागात्मजावक्त्रपयोजसूर्यं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ १५ ॥
सदाशिवं सत्पुरुषैरनेकैः
सदार्चितं सामशिरस्सुगीतम् ।
वैय्याघ्रचर्माम्बरमुग्रमीशं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ १६ ॥
सदार्चितं सामशिरस्सुगीतम् ।
वैय्याघ्रचर्माम्बरमुग्रमीशं
चिदम्बरेशं हृदि भावयामि ॥ १६ ॥
चिदम्बरस्य स्तवनं पठेद्यः
प्रदोषकालेषु पुमान् स धन्यः ।
भोगानशेषाननुभूय भूयः
सायुज्यमप्येति चिदम्बरस्य ॥ १७ ॥
प्रदोषकालेषु पुमान् स धन्यः ।
भोगानशेषाननुभूय भूयः
सायुज्यमप्येति चिदम्बरस्य ॥ १७ ॥
इति श्री चिदम्बरेश्वर स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ।
TRANSLATION
अर्थ
मैं भगवान चिदंबरेश्वर नटराज का ध्यान करता हूँ, जो दया के सागर और सभी सुखो को प्रदान करने वाले है,जिनके तीन नेत्र और सिर पर जटा सुशोभित है,और जिनके साथ माँ पार्वती बाएं ओर विद्यमान है,जो सदेव शांत और दिव्य रूप से अलंकृत होने के साथ, अनंत और रूद्ररूप भी है, ॥ १ ॥
मैं चिदंबरम भगवान का ध्यान करता हूं, जो शब्दों से परे है, जो सर्प को आभूषण के रूप में धारण किये है, वह श्री गणेश के पिता और कुबेर के मित्र हैं, जो अभिमान का नाश करते हैं और जिनके नेत्र कमल के समान हैं।॥ २ ॥
मैं चिदंबरम भगवान का ध्यान करता हूं, भगवान विष्णु जिनकी पूजा करते हैं, वह चाँदी के
पहाड़ के स्वामी है, वही न्याय भी करते है और सजा भी वही देते है, वही भविष्य के दुखों का
नाश करते है, और जो राक्षसों से परेशान लोगों की रक्षा करते हैं।॥ ३ ॥
मैं चिदंबरम भगवान का ध्यान करता हूं, जो सभी देवताओं के स्वामी हैं। जो पूरे ब्रह्मांड के एक मात्र स्वामी है, इन्द्र उनकी पूजा करते हैं, चंद्रमा को जो धारण किये है। वह देवी गौरी के पति है, और उन्होंने ही दक्ष के यज्ञ को रोका था।॥ ४ ॥
मैं चिदंबरम भगवान का ध्यान करता हूं, वही वेदों का अंतिम छोर है, जो देवों के शत्रुओं का नाश करते है, जोअपने भक्तों का भला करते है, उन्होंने ही मृत्यु के देवता को मारा था ,और वह अपने भक्तो पर दयालु दृष्टि रखते है।॥५॥
मैं चिदंबरम भगवान का ध्यान करता हूं, जिन्होंने स्वर्ण पर्वत को अपना धनुष बनाया है, वही तीन गुणों के आत्मा सिद्धांत है, भगवान सुब्रमण्य के पिता हैं, बाघों की नगरी के स्वामी है, श्मशान घाट जिनका स्थान है, और जो बैल पर सवार होते है।॥६॥
मैं चिदंबरम भगवान का ध्यान करता हूं, जो शुरू से अंत तक कुछ भी नहीं है, तीनों लोक के शत्रुओं के देवता कौन है, भगवान नंदी द्वारा पूजे जाने वाले,और जिसकी सभी देवताओं द्वारा बार-बार पूजा की जाती है।॥७॥
मैं चिदंबरम भगवान का ध्यान करता हूं, जो अंत में अपने साथ है, जिसके अनेक रूप हैं, वही एकमात्र सत्य है, पिनाक नामक धनुष धारण करने वाला वही है , और भविष्य में विनाश का कारण भी वही है।॥८॥
मैं चिदंबरम भगवान का ध्यान करता हूं, जो ब्रह्मांड के स्वामी है, जो शुरू से अंत तक स्थिर है, जिसकी तीन आंखें हैं, जो चंद्रमा को धारण किये है, जो प्राणियों के मन में उनके स्वामी के रूप में निवास करते हैं।॥९॥
मैं चिदंबरम भगवान का ध्यान करता हूं, जिनका शरीर जलते कपूर की तरह चमकता है, जिनकी आंखें बहुत खूबसूरत हैं, वह कंस के शत्रु के मित्र है, जिनका मुख कमल और चन्द्रमा के समान हे जिनके बाजु बहुत मजबूत और जिनका शरीर अति सप्रभावशाली है, और भगवान ब्रह्मा के मित्र है।॥११॥
मैं चिदंबरम भगवान का ध्यान करता हूं, परिधान के रूप में दिशाओं को कौन पहनता है, जो शंख की तरह हल्का हंसते है, खोपड़ी कौन ढोता है, जो त्रिशूल धारण किये हुए है, और जो वर्णन से परे है।॥१५॥
मैं भगवान चिदंबरेश्वर नटराज का ध्यान करता हूँ, जो दया के सागर और सभी
सुखो को प्रदान करने वाले है,जिनके तीन नेत्र और सिर पर जटा सुशोभित है,
और जिनके साथ माँ पार्वती बाएं ओर विद्यमान है,जो सदेव शांत और दिव्य
रूप से अलंकृत होने के साथ, अनंत और रूद्ररूप भी है, ॥ १ ॥
मैं चिदंबरम भगवान का ध्यान करता हूं, जो शब्दों से परे है, जो सर्प को आभूषण
के रूप में धारण किये है, वह श्री गणेश के पिता और कुबेर के मित्र हैं, जो अभिमान
का नाश करते हैं और जिनके नेत्र कमल के समान हैं।॥ २ ॥
मैं चिदंबरम भगवान का ध्यान करता हूं, भगवान विष्णु जिनकी पूजा करते हैं, वह चाँदी के
पहाड़ के स्वामी है, वही न्याय भी करते है और सजा भी वही देते है, वही भविष्य के दुखों का
नाश करते है, और जो राक्षसों से परेशान लोगों की रक्षा करते हैं।॥ ३ ॥
मैं चिदंबरम भगवान का ध्यान करता हूं, जो सभी देवताओं के स्वामी हैं। जो पूरे ब्रह्मांड के
एक मात्र स्वामी है, इन्द्र उनकी पूजा करते हैं, चंद्रमा को जो धारण किये है। वह देवी
गौरी के पति है, और उन्होंने ही दक्ष के यज्ञ को रोका था।॥ ४ ॥
मैं चिदंबरम भगवान का ध्यान करता हूं, वही वेदों का अंतिम छोर है, जो देवों के
शत्रुओं का नाश करते है, जोअपने भक्तों का भला करते है, उन्होंने ही मृत्यु के
देवता को मारा था ,और वह अपने भक्तो पर दयालु दृष्टि रखते है।॥५॥
मैं चिदंबरम भगवान का ध्यान करता हूं, जिन्होंने स्वर्ण पर्वत को अपना धनुष
बनाया है, वही तीन गुणों के आत्मा सिद्धांत है, भगवान सुब्रमण्य के पिता हैं,
बाघों की नगरी के स्वामी है, श्मशान घाट जिनका स्थान है, और जो बैल पर
सवार होते है।॥६॥
मैं चिदंबरम भगवान का ध्यान करता हूं, जो शुरू से अंत तक कुछ भी नहीं है,
तीनों लोक के शत्रुओं के देवता कौन है, भगवान नंदी द्वारा पूजे जाने वाले,
और जिसकी सभी देवताओं द्वारा बार-बार पूजा की जाती है।॥७॥
मैं चिदंबरम भगवान का ध्यान करता हूं, जो अंत में अपने साथ है, जिसके
अनेक रूप हैं, वही एकमात्र सत्य है, पिनाक नामक धनुष धारण करने वाला
वही है , और भविष्य में विनाश का कारण भी वही है।॥८॥
मैं चिदंबरम भगवान का ध्यान करता हूं, जो ब्रह्मांड के स्वामी है, जो शुरू से
अंत तक स्थिर है, जिसकी तीन आंखें हैं, जो चंद्रमा को धारण किये है, जो
प्राणियों के मन में उनके स्वामी के रूप में निवास करते हैं।॥९॥
मैं चिदंबरम भगवान का ध्यान करता हूं, जिनका शरीर जलते कपूर की तरह
चमकता है, जिनकी आंखें बहुत खूबसूरत हैं, वह कंस के शत्रु के मित्र है,
जिनका मुख कमल और चन्द्रमा के समान हे जिनके बाजु बहुत मजबूत
और जिनका शरीर अति सप्रभावशाली है, और भगवान ब्रह्मा के मित्र है।॥११॥
मैं चिदंबरम भगवान का ध्यान करता हूं, परिधान के रूप में दिशाओं को कौन
पहनता है, जो शंख की तरह हल्का हंसते है, खोपड़ी कौन ढोता है, जो त्रिशूल
धारण किये हुए है, और जो वर्णन से परे है।॥१५॥
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