सूफी रोहल फकीर(१७३४-१८०४) एक संत-कवि और रहस्यवादी, और परिष्कार दर्शन के
प्रतिपादक थे। जाति से जंगेजा, धर्म से मुस्लिम और व्यवहार से सूफी, उन्हें सिंध में
पुनर्जन्म लेने वाले महान संत कवि कबीर के रूप में माना जाता था । रोहल, कवियों और
धर्मपरायण व्यक्तियों की प्रसिद्ध कंदरी शरीफ़ जाति के पूर्वज हैं । वह सूफी-सन्त
शाह इनायत के आशीर्वाद से सूफीवाद की ऊंचाइयों तक पहुंचे । अपनी कविता में उन्होंने
अहंकार और घृणा को त्यागने और प्रेम के पंथ का पालन करने का संदेश व्यक्त किया है।
सूफी रोहल पहले व्यक्ति थे जिन्होंने मुस्लिम सूफी अवधारणाओं के साथ वेदांतिक तत्वों
को जोड़ा। अब कंदरी शरीफ, तालुका रोहरी, जिला सुक्कुर में उनका मंदिर है।
लेना हुए सो, लीजे म्हारा भाईडा रे,
अब आई तो लेवन की रे बेला रे साधो
मनको जन्म हीरो हाथ नहीं आवे रे
फिर भटकत चौरासी रा फेरा रे साधो
एडो रतन हीरो हाथ नहीं आवे रे।If you wish to receive, do so now
Now is the hour for receiving, O seeker!
This human birth may not come around again
Stumbling through endless cycles of birth
This priceless gem may not come around again!ज्ञान कठे नर रेहनी नहीं रहता रे
अब बिन तो रहनी कैसा ज्ञान आवे साधो
मन पर्मोद सके नहीं आपनो रे
फिर औरन सू पूंछे, औरन सू पूंछे, ज्ञाना रे साधो
मानको जन्म हीरो हाथ नहीं आवे रे
अब आयी तो लेवन की रे बेला रे साधो
ऐड़ो रतन हीरो हाथ नहीं आवे रेYou blabber fine words – do you live them?
What good is such wisdom, unlived?
Will it quench a thirsty heart’s seeking?
You’ll wander again, in search of meaning, weeping!
This human birth may not come around again!किरपा भई जद सौदा रचिया रे
अब भावभगत कैसी प्यासी रे साधो
रोहल रतन अमोलक पायो रे
मै तो सिर साते अविनाशी रे साधो
मानको जन्म हीरो हाथ नहीं आवे रे
अब आई तो लेवन की रे बेला रे साधो
एडो रतन हीरो हाथ नहीं आवे रे।When Grace appeared, the deal was struck
Now what need of adulation or fame?
Rohal made off with the priceless jewel
He cut off his head, and became immortal
Head taken off and placed before the guru
This human birth may not come around again!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें