https://youtu.be/vYuGnBrUQZo
सोहर : पंडित छन्नू लाल मिश्र
पंडित जी का गायन मात्र गायन ही नहीं ज्ञान भी है।
उनको सुनना परंपरा और आध्यात्म की एक आनन्ददायक
यात्रा से गुजरना है। उनकी विद्वता और कला में भारत की
आत्मा बोलती है, जिसकी प्रतिध्वनि उन्हें सुन कर ही महसूस
की जा सकती है।
-अरुण मिश्र
मोरे पिछवरवा चन्दन गाछ अवरो से चन्दन हो
रामा सुघर बढ़इया मारे छेवर ललन जी के पालन हो।।
रामा के गढ़उ खड़उवा लालन जी के पालन हो,
रामा जसुमती ठाढ़ी झुलावै लालन जी के पालन हो।।
झूलहु त लाल झूलहु अवरो से झूलहु हो,
रामा जमुना से जल भरि लाईं त झुलवा झुलाइब हो।।
जमुना पहुँचहू न पइलिउँ घड़िलवौ न भरिलिउँ हो,
रामा पिछवा उलटि जो मैं चितवउं महल मुरली बाजल हो।।
रान परोसिन मैया मोरी अवरो बहिन मोरी हो,
बहिनि छवहि दिना के भइने लाल त मुरली बजावल हो।।
चुप रहो जसुमति चुप रहो दुस्मन जनि सुने हो,
बहिनी ईहैं के कन्स के मरिहैं औ गोकुला बसैहे हो।।
*
गाछ = पौधा, वृक्ष
सुघर = निपुण
अवरो = और
छेवर = लकड़ी पर औजार से चोट
बढ़इया = बढ़ई
गढउ = बनाओ
घड़िलवौ = घड़ा, गगरी
सोहर : पंडित छन्नू लाल मिश्र
पंडित जी का गायन मात्र गायन ही नहीं ज्ञान भी है।
उनको सुनना परंपरा और आध्यात्म की एक आनन्ददायक
यात्रा से गुजरना है। उनकी विद्वता और कला में भारत की
आत्मा बोलती है, जिसकी प्रतिध्वनि उन्हें सुन कर ही महसूस
की जा सकती है।
-अरुण मिश्र
मोरे पिछवरवा चन्दन गाछ अवरो से चन्दन हो
रामा सुघर बढ़इया मारे छेवर ललन जी के पालन हो।।
रामा के गढ़उ खड़उवा लालन जी के पालन हो,
रामा जसुमती ठाढ़ी झुलावै लालन जी के पालन हो।।
झूलहु त लाल झूलहु अवरो से झूलहु हो,
रामा जमुना से जल भरि लाईं त झुलवा झुलाइब हो।।
जमुना पहुँचहू न पइलिउँ घड़िलवौ न भरिलिउँ हो,
रामा पिछवा उलटि जो मैं चितवउं महल मुरली बाजल हो।।
रान परोसिन मैया मोरी अवरो बहिन मोरी हो,
बहिनि छवहि दिना के भइने लाल त मुरली बजावल हो।।
चुप रहो जसुमति चुप रहो दुस्मन जनि सुने हो,
बहिनी ईहैं के कन्स के मरिहैं औ गोकुला बसैहे हो।।
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गाछ = पौधा, वृक्ष
सुघर = निपुण
अवरो = और
छेवर = लकड़ी पर औजार से चोट
बढ़इया = बढ़ई
गढउ = बनाओ
घड़िलवौ = घड़ा, गगरी
pandit ji mahan sakshiyat hain.. unke charno mein naman
जवाब देंहटाएंVery good. Thanks
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