शनिवार, 2 मार्च 2019

नवल बसंत नवल वृन्दावन

ध्रुपद
नवल बसंत नवल वृन्दावन नवल ही फूले फूल।।
नवल ही कान्ह नवल बनी गोपी निर्त्तत एकही तूल।।1।

नवल गुलाल उड़े रंग बूका नवल बसंत अमूल।।
नवल ही छींट बनी केसर की मेटत मन्मथ सूल।।2।।
नवल ही ताल पखावज बाजत नवल पवन के झूल।।
नवल ही बाजे बाजत श्रीभट कालिंदी के कूल।।3।।

https://youtu.be/gFNS-xAbYtw

रचना : स्वामी श्री श्रीभट्ट देवाचार्य जी महाराज (निम्बार्क सम्प्रदाय) चौदहवीं शताब्दी
गायक : हवेली संगीतकार श्री भगवती प्रसाद जी (नाथद्वारा)
राग : वसंत

Swami Shri Shribhatta Devacharya Ji Maharaj,
who was the leader of the Nimbarka Sampradaya
of Vaishnavs in the early 14th Century wrote the
first ever Vani granth in Vraja Bhasha in the year
1352 (Vikram Samvat), which was his record of
the Padas that the Sakhis sung to the Lord in the
Nitya Lilas of Nikunja.
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