भगवान शिव समस्त लोक का कल्याण करें
महाशिवरात्रि पर विशेष
गंग की धारा जटा में औ’ ज़बीं पे है हिलाल.......
- अरुण मिश्र.
गंग की धारा जटा में, औ’ ज़बीं पे है हिलाल।
कंठ नीला है ज़हर से, है गले सर्पों की माल।।
तन भभूती हैं रमाये, हाथ में डमरू, त्रिशूल।
देख ये भोले की छवि, हैं पार्वती माता निहाल।।
है बदन काफूर सा, दरक़ार है कब पैरहन।
खाल ओढ़े फ़ील का, औ’ शेर की बाँधे हैं छाल।।
रात-दिन खि़दमत में हैं,सब भूतो-जि़न्न,प्रेतो-पिशाच।
भक्त को तेरे छुयें, इनमें भला किसकी मज़ाल।।
जो तिरे नज़दीक, उससे दूर भागे हर बला।
पास फटकेगी तो नन्दी, सींग से देगा उछाल।।
गंग के औ’ चन्द्र के, ठंढक का ही है आसरा।
आँख से ग़र तीसरे, निकले कहीं विकराल ज्वाल।।
बान फूलों के चला के, काम ने तोड़ी समाधि।
जल गया ज़ुर्रत पे अपनी, जग में ज़ाहिर सारा हाल।।
भस्म हो जाये न दुनिया, ताप से, संताप से।
बर्फ के मस्क़न हिमालय, तू सदा शिव को सॅभाल।।
*
महाशिवरात्रि पर विशेष
गंग की धारा जटा में औ’ ज़बीं पे है हिलाल.......
- अरुण मिश्र.
गंग की धारा जटा में, औ’ ज़बीं पे है हिलाल।
कंठ नीला है ज़हर से, है गले सर्पों की माल।।
तन भभूती हैं रमाये, हाथ में डमरू, त्रिशूल।
देख ये भोले की छवि, हैं पार्वती माता निहाल।।
है बदन काफूर सा, दरक़ार है कब पैरहन।
खाल ओढ़े फ़ील का, औ’ शेर की बाँधे हैं छाल।।
रात-दिन खि़दमत में हैं,सब भूतो-जि़न्न,प्रेतो-पिशाच।
भक्त को तेरे छुयें, इनमें भला किसकी मज़ाल।।
जो तिरे नज़दीक, उससे दूर भागे हर बला।
पास फटकेगी तो नन्दी, सींग से देगा उछाल।।
गंग के औ’ चन्द्र के, ठंढक का ही है आसरा।
आँख से ग़र तीसरे, निकले कहीं विकराल ज्वाल।।
बान फूलों के चला के, काम ने तोड़ी समाधि।
जल गया ज़ुर्रत पे अपनी, जग में ज़ाहिर सारा हाल।।
भस्म हो जाये न दुनिया, ताप से, संताप से।
बर्फ के मस्क़न हिमालय, तू सदा शिव को सॅभाल।।
*
(पूर्वप्रकाशित)
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