https://youtu.be/hTSXTr1u_9Q
Sri Maha Ganesha Pancharatnam composed by Sri Adi Shankaracharya Vocal : Dhanya, Devinanda, Devkrishna Flute & Tabla : Jyothish Kaimal
श्रीगणेशपञ्चरत्नस्तोत्रम्
॥श्रीगणेशाय नमः ॥मुदाकरात्तमोदकं सदाविमुक्तिसाधकं कलाधरावतंसकं विलासिलोकरक्षकम् । अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ॥ १॥ जो अपने हाथों में सदैव प्रसन्नतापूर्वक मोदक को धारण किये रहते हैं, जो सदा अपने साधकों (भक्तों) को मुक्ति प्रदान करते हैं, जिन्होंने चन्द्रमा को आभूषण के रूप में धारण किया है और जो लोकों के रक्षक हैं, जो अनाथों के नाथ और गजासुर के संहारकर्ता हैं, जो तीव्र वेग से सभी अशुभों का नाश करते हैं उन विनायक को नमस्कार है। नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं नमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम् ।सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥ २॥ जो घमंड से भरे लोगों के लिए भयंकर रूप धारण करते हैं, जो उगते हुए सूर्य की भांति चमकते हैं, जो डिवॉन के द्वारा नमस्कृत और निर्जर (कभी वृद्ध न होने वाले) हैं, जो अपने शरणागतों की बाधाओं को दूर करते हैं, उन सुरेश्वर, निधीश्वर (समृद्धि के देव), गजेश्वर और गणेश्वर (गणों के राजा), महेश्वर की मैं शरण लेता हूँ। समस्तलोकशङ्करं निरस्तदैत्यकुञ्जरं दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् ।कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥ ३॥ जो सभी लोकों में शुभ हैं, जो बड़े-बड़े दैत्यों को दूर करते हैं, जिनका बड़ा उदर समृद्धि का प्रतीक है और जिनका मुख अविनाशी प्रकृति को दर्शाता है, जो अपने भक्तों पर कृपा, क्षमा, आनन्द, यश और बुद्धि की वर्षा करते हैं, उन विनायक के ओजस्वी रूप को मैं प्रणाम करता हूँ। अकिञ्चनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्तिभाजनं पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् ।प्रपञ्चनाशभीषणं धनञ्जयादिभूषणं कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥ ४॥जो अपने शरणागतों की पीड़ा को दूर करते हैं, जिनकी प्राचीन काल से प्रशंसा हो रही है, जो भगवान शिव (पुरारी) के पूर्वनन्दन (पुत्र) हैं, जो देवताओं के शत्रुओं के घमंड को चबा जाते हैं, जो प्रलय के समय प्रचंड शक्ति धारण करते हैं, जो अग्नि की शक्ति से विभूषित हैं, जिनके गालों (कपोलों) से कृपा की धारा बहती है, उन आदिदेव श्री गणेश को मैं पूजता हूँ। नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजं अचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम् ।हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥ ५॥जिनका एकदन्त रूप भक्तों को प्रिय है, जो यम के संहारक (शिव) के पुत्र हैं, जिनका अनादि रूप अकल्पनीय है, जो भक्तों के कष्टों को हर लेते हैं, और जो योगियों के ह्रदय में निरंतर वास करते हैं उन एकदन्त भगवान का मैं ध्यान करता हूँ। महागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् । अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥ ६॥ जो इस महागणेश पंचरत्न को भक्तिपूर्वक एवं भगवान गणेश का ह्रदय में ध्यान करके पढ़ते हैं, उन्हें रोगों और दोषों से मुक्ति मिलती है और उन्हें गुणवान पत्नी और पुत्र की प्राप्ति होती है और वे लोग अष्ट ऐश्वर्य पाकर लम्बी आयु प्राप्त करते हैं।
इति श्रीशङ्करभगवतः कृतौ श्रीगणेशपञ्चरत्नस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें