शुक्रवार, 18 जून 2021

नमामि भक्तवत्सलम्...(रामचरित मानस) / गोस्वामी तुलसीदास / पण्डित राजन-साजन मिश्र

 https://youtu.be/AERqMlH3ddU 

अत्रि मुनि द्वारा श्री राम की स्तुति - श्री रामचरित मानस, अरण्य काण्ड 

छंद
नमामि भक्त वत्सलं। कृपालु शील कोमलं।।
भजामि ते पदांबुजं। अकामिनां स्वधामदं।।
निकाम श्याम सुंदरं। भवाम्बुनाथ मंदरं।।
प्रफुल्ल कंज लोचनं। मदादि दोष मोचनं।।
प्रलंब बाहु विक्रमं। प्रभोऽप्रमेय वैभवं।।
निषंग चाप सायकं। धरं त्रिलोक नायकं।।
दिनेश वंश मंडनं। महेश चाप खंडनं।।
मुनींद्र संत रंजनं। सुरारि वृंद भंजनं।।
मनोज वैरि वंदितं। अजादि देव सेवितं।।
विशुद्ध बोध विग्रहं। समस्त दूषणापहं।।
नमामि इंदिरा पतिं। सुखाकरं सतां गतिं।।
भजे सशक्ति सानुजं। शची पतिं प्रियानुजं।।
त्वदंघ्रि मूल ये नराः। भजंति हीन मत्सरा।।
पतंति नो भवार्णवे। वितर्क वीचि संकुले।।
विविक्त वासिनः सदा। भजंति मुक्तये मुदा।।
निरस्य इंद्रियादिकं। प्रयांति ते गतिं स्वकं।।
तमेकमभ्दुतं प्रभुं। निरीहमीश्वरं विभुं।।
जगद्गुरुं च शाश्वतं। तुरीयमेव केवलं।।
भजामि भाव वल्लभं। कुयोगिनां सुदुर्लभं।।
स्वभक्त कल्प पादपं। समं सुसेव्यमन्वहं।।
अनूप रूप भूपतिं। नतोऽहमुर्विजा पतिं।।
प्रसीद मे नमामि ते। पदाब्ज भक्ति देहि मे।।
पठंति ये स्तवं इदं। नरादरेण ते पदं।।
व्रजंति नात्र संशयं। त्वदीय भक्ति संयुता।।

दोहा/सोरठा 
बिनती करि मुनि नाइ सिरु कह कर जोरि बहोरि।
चरन सरोरुह नाथ जनि कबहुँ तजै मति मोरि।।

भावार्थ 

नमामि भक्त वत्सलं, कृपालु शील कोमलं।
भजामि ते पदांबुजं, अकामिनां स्वधामदं॥ (१)
भावार्थ : हे प्रभु! आप भक्तों को शरण देने वाले है, आप सभी पर कृपा करने वाले है, आप अत्यंत कोमल स्वभाव वाले है, मैं आपको नमन करता हूँ। हे प्रभु! आप कामना-रहित जीवों को अपना परम-धाम प्रदान करने वाले है, मैं आपके चरण कमलों का स्मरण करता हूँ। (१)

निकाम श्याम सुंदरं, भवांबुनाथ मंदरं।
प्रफुल्ल कंज लोचनं, मदादि दोष मोचनं॥ (२)

भावार्थ : हे प्रभु! आप आसक्ति-रहित हैं, आप श्याम वर्ण में अति सुन्दर हैं, आप ब्रह्माण्ड को मंदराचल पर्वत के समान धारण किये हुए हैं। हे प्रभु! आपके नेत्र खिले हुए कमल के समान है, आप ही अभिमान आदि विकारों का नाश करने वाले हैं। (२)

प्रलंब बाहु विक्रमं, प्रभोऽप्रमेय वैभवं।
निषंग चाप सायकं, धरं त्रिलोक नायकं॥ (३)

भावार्थ : हे प्रभु! आप लंबी भुजाओं वाले हैं, आपका पराक्रम और ऐश्वर्य कल्पना से परे हैं। हे प्रभु! आप धनुष-बाण और तुणींर (बाण रखने वाला तरकस) धारण करने वाले हैं, आप ही तीनों लोकों के स्वामी हैं। ( (३)

दिनेश वंश मंडनं, महेश चाप खंडनं॥
मुनींद्र संत रंजनं, सुरारि वृंद भंजनं॥ (४)

भावार्थ : हे प्रभु! आप चन्द्रवंश को गौरव प्रदान करने वाले हैं, आप ही शिवजी के धनुष को तोड़ने वाले हैं। हे प्रभु! आप श्रेष्ठ मुनियों और संतों को आनंद प्रदान करने वाले हैं, आप ही देवताओं की रक्षा करने वाले और असुरों का नाश करने वाले हैं। (४)

मनोज वैरि वंदितं, अजादि देव सेवितं।
विशुद्ध बोध विग्रहं, समस्त दूषणापहं॥ (५)

भावार्थ : हे प्रभु! कामदेव को भस्म करने वाले शिवजी आपकी वंदना करते हैं और ब्रह्मा आदि देव आपकी सेवा करते हैं। हे प्रभु! आप विशुद्ध ज्ञान स्वरूप वाले हैं और आप ही मेरे समस्त दोषों का नाश करने वाले हैं। (५)

नमामि इंदिरा पतिं, सुखाकरं सतां गतिं।
भजे सशक्ति सानुजं, शची पति प्रियानुजं॥ (६)

भावार्थ : हे प्रभु! आप ही लक्ष्मी जी के स्वामी हैं, आप सभी सुखों को देने वाले हैं, हे संतो को परम गति प्रदान करने वाले मैं आपको नमन करता हूँ। आप ही शची देवी के पति इन्द्र देव के प्रिय छोटे भाई (वामन अवतार) हैं, हे प्रभु! मैं आपका शक्ति स्वरूप श्री सीता जी और छोटे भाई श्री लक्ष्मण जी सहित स्मरण करता हूँ। (६)

त्वदंघ्रि मूल ये नराः, भजंति हीन मत्सराः।
पतंति नो भवार्णवे, वितर्क वीचि संकुले॥ (७)

भावार्थ : हे प्रभु! जो मनुष्य ईर्ष्या-रहित होकर आपके चरण कमलों का निरन्तर स्मरण करते हैं, वह मनुष्य फिर से भयंकर लहरों वाले संसार रूपी सागर में नहीं गिरते हैं (पुनर्जन्म को प्राप्त नही होते हैं)। (७)

विविक्त वासिनः सदा, भजंति मुक्तये मुदा।
निरस्य इंद्रियादिकं, प्रयांति ते गतिं स्वकं॥ (८)

भावार्थ : हे प्रभु! प्रसन्नता पूर्वक एकान्त स्थान में रहने वाले जो मनुष्य मोक्ष के लिए आपका निरन्तर ध्यान करते हैं, वह मनुष्य इन्द्रिय-विषयों से आसक्ति-रहित होकर परम गति को प्राप्त होते हैं। (८)

तमेकमद्भुतं प्रभुं, निरीहमीश्वरं विभुं।
जगद्गुरुं च शाश्वतं, तुरीयमेव केवलं॥ (९)

भावार्थ : हे प्रभु! आप ही इस जड़ रूपी संसार में एक मात्र चेतन स्वरूप हैं, आप आसक्ति-रहित सर्वव्यापी ईश्वर हैं। हे प्रभु! आप ही शाश्वत जगदगुरु हैं, आप ही केवल अपने वास्तविक स्वरूप को जानने वाले हैं। (९)

भजामि भाव वल्लभं, कुयोगिनां सुदुर्लभं।
स्वभक्त कल्प पादपं, समं सुसेव्यमन्वहं॥ (१०)

भावार्थ : हे प्रभु! आप को भाव से ही जाना जा सकता है, योग मार्ग से भटके हुए मनुष्यों के लिये आप को प्राप्त करना अत्यन्त दुर्लभ है। हे प्रभु! आप अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हैं, सभी जीवों द्वारा समान रूप से पूजित प्रभु का मैं निरन्तर भजन करता हूँ। (१०)

अनूप रूप भूपतिं, नतोऽहमुर्विजा पतिं।
प्रसीद मे नमामि ते, पदाब्ज भक्ति देहि मे॥ (११)

भावार्थ : हे अनुपम रूप वाले समस्त जीवों के स्वामी सीता-पति मैं आपको प्रणाम करता हूँ। हे प्रभु आप मुझ पर प्रसन्न होकर अपने चरण कमलों की भक्ति प्रदान कीजिये आपको मेरा नमस्कार है। (११)

पठंति ये स्तवं इदं, नरादरेण ते पदं।
व्रजंति नात्र संशयं, त्वदीय भक्ति संयुताः॥ (१२)

भावार्थ : जो मनुष्य इस स्तुति को आदर-पूर्वक पढ़ते हैं, वह संशय-रहित होकर आपकी भक्ति से युक्त होकर परम पद को प्राप्त होते हैं। (१२)

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