https://youtu.be/Kp6n4SoDf0g
भये प्रगट कृपाला दीनदयाला... (रामचरितमानस - बालकाण्ड ) भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी |हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ||
............... दीनों पर दया करने वाले , कौशल्या जी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रगट हुए ।
मुनियों के मनों को हरने वाले उनके अद्भुत रुप का विचार करके माता हर्ष से भर गयी ॥
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी |
भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी ||
............. नेत्रों को आनंद देने वाल मेघ के समान श्याम शरीर था , चारों भुजाओं में
अपने [ खास] आयुध [ धारण किये हुए ] थे, [दिव्य ] आभूषण और वनमाला पहने
थे, बड़े-बड़े नेत्र थे । इस प्रकार शोभा के समुन्द्र तथा खर राक्षस को मारने वाले
भगवान प्रगट हुए ॥
कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता |
माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता ||
.............. दोनों हाथ जोड़कर माता कहने लगी --- हे अनन्त ! मैं किस प्रकार तुम्हारी
स्तुति करुँ । वेद और पुराण तुमको माया , गुण और ज्ञान से परे बताते हैं ।
करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता |
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयौ प्रकट श्रीकंता ||
............. श्रुतियां और संत जन दया और सुख का समुन्द्र , सब गुणोँ का धाम कहकर
जिनका गान करते हैं, वही भक्तों पर प्रेम करने वाले लक्ष्मीपति भगवान मेरे कल्याण
के लिये प्रगट हुए हैं ॥
ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै |
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै ||
................ वेद कहते हैं तुम्हारे प्रत्येक रोम में माया के रचे हुए अनेकोँ ब्रह्मण्डों के समूह
[ भरे ] हैं । वे तुम मेरे गर्भ में रहे ----- इस हंसी कि बात के सुनने पर धीर [ विवेकी ] पुरुषों
की बुद्धि स्थिर नहीं रहती [ विचलित हो जाती है ] ॥
उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै |
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ||
.............. जब माता को ज्ञान उत्पन्न हुआ , तब प्रभु मुस्कराये । वे बहुत प्रकार के चरित्र
करना चाहते हैं । अतः उन्होंने [ पूर्वजन्म ] सुन्दर कथा कह कर माता को समझाया ,
जिससे उन्हेँ पुत्र का [ वात्सल्य ] प्रेम प्राप्त हो [ भगवान के प्रति पुत्र भाव हो जाये ] ॥
माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा |
कीजे सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ||
.............. माता की बुद्धि बदल गयी तब वह फिर बोली ------ हे तात ! यह रुप छोड़ कर
अत्यन्त प्रिय बाललीला करो, [ मेरे लिए ] यह सुख परम अनुपम होगा ।
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होई बालक सुरभूपा |
यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं भवकूपा ||
............. [माता का वचन सुनकर देवताओं के स्वामी सुजान भगवान ने बालक [ रूप ]
होकर रोना शुरु कर दिया । [ तुलसीदास जी कहते हैं ] जो इस चरित्र का गान करते हैँ,
वे श्रीहरि का पद पाते हैं और [ फिर] संसार रूपी कूप में नहीं गिरते हैं ॥
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