मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए .../ अल्लामा इक़बाल / हिना नसरुल्लाह

https://youtu.be/s-PdaQxWlSE
"अन्दाज़-ए-बयां गर चे बहुत शोख़ नहीं है 
शायद कि उतर जाये तेरे दिल में मेरी बात"
-अल्लामा इक़बाल 

तू ज़मीं के लिए है आसमाँ के लिए
जहाँ है तेरे लिए तू नहीं जहाँ के लिए
ये अक़्ल दिल हैं शरर शोला-ए-मोहब्बत के
वो ख़ार-ओ-ख़स के लिए है ये नीस्ताँ के लिए
मक़ाम-ए-परवरिश-ए-आह-ओ-लाला है ये चमन
सैर-ए-गुल के लिए है आशियाँ के लिए
रहेगा रावी नील फ़ुरात में कब तक
तिरा सफ़ीना कि है बहर-ए-बे-कराँ के लिए
निशान-ए-राह दिखाते थे जो सितारों को
तरस गए हैं किसी मर्द-ए-राह-दाँ के लिए
निगह बुलंद सुख़न दिल-नवाज़ जाँ पुर-सोज़
यही है रख़्त-ए-सफ़र मीर-ए-कारवाँ के लिए
ज़रा सी बात थी अंदेशा-ए-अजम ने उसे
बढ़ा दिया है फ़क़त ज़ेब-ए-दास्ताँ के लिए

मिरे गुलू में है इक नग़्मा जिब्राईल-आशोब
संभाल कर जिसे रक्खा है ला-मकाँ के लिए

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