शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020

अभी इस तरफ़ न निग़ाह कर.../ बशीर बद्र

https://youtu.be/NXtTWFhneCs

शायर : बशीर बद्र
प्रस्तुति : अहसन शक़ील

अभी इस तरफ़ न निग़ाह कर, मैं ग़ज़ल की पलकें संवार लूँ
मेरा लफ़्ज़-लफ़्ज़ हो आईना, तुझे आईने में उतार लूँ

मैं तमाम दिन का थका हुआ, तू तमाम शब् का जगा हुआ
जरा ठहर जा इसी मोड़ पर, तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ

अगर आस्मां की नुमाइशों में मुझे भी इज़्न-ए- क़याम हो
तो मैं मोतियों की दुकान से, तेरी बालियाँ तेरे हार लूँ

कहीं और बाँट दे शोहरतें, कहीं और बख़्श दे इज़्ज़तें
मेरे पास है मेरा आईना, मैं कभी न गर्द-ओ-ग़ुबार लूँ

कई अज़नबी तेरी राह में, मेरे पास से यूँ गुज़र गए
जिन्हें देख कर ये तड़प हुई, तेरा नाम ले के पुकार लूँ
*
इज़्न-ए- क़याम - ठहरने की अनुमति

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