https://youtu.be/hzNJNGdwHXM
ऐसी भई अनहोनी सखी, अपनी छवि ना पहिचानत राधा।रोवैं जसोदा कि टोना भयो, कान्ह आपन नाम बतावत 'राधा'।
घूंघट में उत स्याम ठड़े, इत बेसुध बंसी बजावत राधा।
स्याम ही स्याम पुकारत स्याम, औ राधा ही राधा पुकारत राधा।।
माँग भर , बिंदिया लगाई जब राधिका ने, लागे जैसे भोर वाला सूरज है झोरी में।
कजरा लगावे तो या लागे के समुन्दर मा, मछरी फँसाय लई मछुवन डोरी में।
गोरे-गोरे मुखड़े पे, घुंघटा सुनहरा यूँ , जैसे चाँद रखे कोई सोने की कटोरी में।
नाक मा नथनिया वा धीरे-धीरे डारे ऐसे, जैसे कोई मालदार ताला दे तिजोरी में।।
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