शुक्रवार, 22 मार्च 2024

तुम निश्चिन्त रहना.../ किशन सरोज

 https://youtu.be/2jKYI08Q_mk

किशन सरोज जैसे गीतकार हिंदी की दुनिया में कभी- कभी जन्म लेते हैं। 
वे रागात्मक भाव के कवि थे और उनकी अधिकांश रचनाएं राग भाव के 
प्रासंगिक स्थितियों पर आधारित हैं। 19 जनवरी 1939 को उत्तर प्रदेश के 
बरेली के बल्लिया ग्राम में जन्मे किशन सरोज ने 350 से अधिक प्रेमगीत 
लिखे। उन्होंने लम्बी बीमारी के पश्चात ८ 
जनवरी, २०१९ को अंतिम सांस ली। 

कर दिए लो आज गंगा में प्रवाहित
सब तुम्हारे पत्र, सारे चित्र, तुम निश्चिन्त रहना।।

धुन्ध डूबी घाटियों के इन्द्रधनु तुम,
छू गए नत  भाल पर्वत हो गया मन। 
बून्द भर जल बन गया पूरा समन्दर,
पा तुम्हारा दुख तथागत हो गया मन। 
अश्रु जन्मा गीत कमलों से सुवासित,
यह नदी होगी नहीं अपवित्र, तुम निश्चिन्त रहना 
।।

दूर हूँ तुमसे न अब बातें उठें,
मैं स्वयं रंगीन दर्पण तोड़ आया। 
वह नगर, वे राजपथ, वे चौक-गलियाँ,
हाथ अंतिम बार सबको जोड़ आया। 
थे हमारे प्यार से जो-जो सुपरिचित,
छोड़ आया वे पुराने मित्र, तुम निश्चिंत रहना 
।।

लो विसर्जन आज वासंती छुअन का,
साथ बीने सीप-शंखों का विसर्जन। 
गुँथ न पाए कनुप्रिया के कुंतलों में,
उन अभागे मोर पंखों का विसर्जन। 
उस कथा का जो न हो पाई प्रकाशित,
मर चुका है एक-एक चरित्र, तुम निश्चिंत रहना 
।।

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