गुरुवार, 7 मई 2020

निर्वाण षट्कं (आत्मषट्कं) / श्रीमच्छङ्कराचार्य विरचित / भावानुवाद सहित / स्वर : स्मिता एवं निहाल

https://youtu.be/QW2nQzDPXng
प्रमुख स्वर : स्मिता एवं निहाल

Nirvana (Atma) Shatkam is a composition consisting of 6 slokas written by
Jagadguru Adi Shankaracharya summarizing the basic teachings of
Advaita Vedanta or the teachings of non-dualism. It is often said by
realized Gurus that these few verses can be of tremendous value for
progressing on the path of self realization.

Smita (born Smita Vallurupalli on 4 September 1980) is an Indian 
pop singer, playback singer and actress known for her works in 
Telugu cinema, Bollywood, Tamil cinema and Kannada cinema. 
She has appeared in films such as Malliswari (2004) and Aata (2007). 

श्रीमच्छङ्कराचार्य विरचित 
आत्मषट्कं का भावानुवाद 


-अरुण मिश्र 

न    हूँ    मैं  अहंकार,   मन, चित्त, बुद्धि ;   
न   हूँ   कर्ण-जिह्वा,   न    हूँ    नेत्र-नासा।
न    हूँ   व्योम-भूमि,   न    हूँ   तेज-वायु ;
चिदानन्द का रूप, शिव  हूँ,  मैं शिव  हूँ ।।

न    मैं   प्राणसंज्ञा,    न    हूँ    पंच-वायु ;
न    हूँ    सप्तधातु,   न    हूँ     पंचकोश।
न मुख-कर-चरण   हूँ ,  न  गुह्यांग कोई ;
चिदानन्द का रूप, शिव  हूँ ,  मैं शिव  हूँ ।।

मुझे   राग   ना   द्वेष,   ना  लोभ-मोह ;
न मद कोई मुझ में, न मात्सर्य का भाव।
नहीं   धर्म,   ना   अर्थ,  ना  काम-मोक्ष ;
चिदानन्द का रूप, शिव  हूँ ,  मैं शिव  हूँ ।।

नहीं  हूँ  मैं सुख-दुख, नहीं पुण्य या पाप ;
नहीं   वेद,   ना   यज्ञ,    ना    मन्त्र-तीर्थ।
नहीं  हूँ  मैं  भोजन,   न  हूँ   भोज्य-भोक्ता ;
चिदानन्द का रूप, शिव  हूँ ,  मैं शिव  हूँ ।।

नहीं  मृत्युभय  मुझ को,  ना  जातिभेद ;
न   माता-पिता   मेरे,   ना   जन्म  कोई।
न बन्धु, न मित्र, न गुरु कोई, ना शिष्य;
चिदानन्द का रूप, शिव  हूँ,  मैं शिव  हूँ ।।

निराकार    हूँ     रूप   मैं,    निर्विकल्प ;
सकल -  सृष्टि - सर्वत्र  -  सर्वांग- व्यापी।
सदा मुझ में सम भाव, बन्धन ना मुक्ति ;
चिदानन्द का रूप, शिव  हूँ ,  मैं शिव  हूँ ।।
                                 *


मूल संस्कृत पाठ :

      : आत्मषट्कम् , निर्वाणषट्कम् : 
     मनोबुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहं
     न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे ।
     न च व्योमभूमिः न तेजो न वायुः
     चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥ १॥
           न च प्राणसंज्ञो न वै पंचवायुः
           न वा सप्तधातुर्न वा पंचकोशः ।
           न वाक् पाणिपादौ न चोपस्थपायू
           चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥ २॥
     न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ
     मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः ।
     न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः
     चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥ ३॥
           न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं
           न मंत्रो न तीर्थं न वेदा न यज्ञाः ।
           अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता
           चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥ ४॥
     न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः
     पिता नैव मे नैव माता न जन्म ।
     न बंधुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यः
     चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥ ५॥
           अहं निर्विकल्पो निराकाररूपो
           विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् ।
           सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः
           चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥ ६॥    
॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं आत्मषट्कं सम्पूर्णम् ॥

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