https://youtu.be/eDQm1HsXikk
स्वर्गीय रईस रामपुरी साहेब के सान्निध्य एवं स्नेह का सौभाग्य मुझ
अकिञ्चन को भी प्राप्त हुआ है। उनसे संपर्क मेरे जीवन का अमूल्य
अनुभव है। पहली बार उन्हें सुन कर, उनके लिए एक शेर कहा था :
"कुछ तो बाक़ी है ज़रूर 'मीर' के पैमाने में
वर्ना ये ग़ज़लें 'रईस' और इस ज़माने में"
-अरुण मिश्र
'रईस साहेब' को सुनना भाव, भाषा, एवं शिल्प की आनन्ददायी
साहित्यिक सरिता में गोते लगाना है।
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