https://youtu.be/aa8onCQryfQ
शब-ए-हिज्र वो दम-ब-दम याद आये...
Poet: Nawab Muazzam Jaah Shaji
Lead Vocalist: Ustad Farid Ayaz & Ustad Abu Muhammad
रब अन-दर बुतकदा शीनम, बे पैश ए बुत कुनम सजदा
अगर याबम ख़रीदारे, फ़रोशाम दीन-ओ-ईमान मा
I shall travel to the house of idolatry, circle it and prostrate myself
O find me a buyer so I can sell my belief and my faith.
(attributed to the Chistiyya saint Hazrat Bu Ali Qalandar, 1209-1324.)
दिल की दुनिया को जो बर्बाद किया करता है
उसी के दर्द को दिल याद किया करता है
जब कभी ज़ुल्म को इजाद (evolve) किया करता है
सबसे पहले वो मुझे याद किया करता है
कुछ अज़ब लुत्फ़ से बेदाद किया करता है
बाल-ओ-पर (feathers) नोच के आज़ाद किया करता है
शब-ए-हिज्र वो दम-ब-दम याद आये
बहुत याद आकर भी कम याद आये
अदू (Rivals) उनको बेहर-ए-करम याद आये
सितम आज़माने को हम याद आये
ये कैसा भी गुज़रा है आलम के पहरों
न तुम याद आये न हम याद आये
हमहीं वो मुजस्सम-ए-वफ़ा (personification of faithfulness) हैं के जिनको
तेरे सितम भी ब-तर्ज़-ए (transcribed as) करम याद आये
'शहजि' आज तनहा चमन में गए थे
बहुत उनके नख्श-ए-कदम याद आये |
Moazzam Jah, Walashan Shahzada Nawab Mir Sir Shuja’at ‘Ali Khan Siddiqi Bahadur, KCIE (1907 – 1987), was the son of the last Nizam of Hyderabad, Mir Osman Ali Khan, Asaf Jah VII, and his first wife Dulhan Pasha Begum. He married Princess Niloufer, one of the last princesses of the Ottoman empire, and represents the extinction of a line that held sway in the Deccan of India for 200 years.
This son of the last Nizam was a poet who wrote under the pen name Shahji, or sometimes Shahji Hyderabadi. Here, Farid Ayaz and Company render one of his compositions.
रब अन-दर बुतकदा शीनम, बे पैश ए बुत कुनम सजदा
अगर याबम ख़रीदारे, फ़रोशाम दीन-ओ-ईमान मा
I shall travel to the house of idolatry, circle it and prostrate myself
O find me a buyer so I can sell my belief and my faith.
(attributed to the Chistiyya saint Hazrat Bu Ali Qalandar, 1209-1324.)
दिल की दुनिया को जो बर्बाद किया करता है
उसी के दर्द को दिल याद किया करता है
जब कभी ज़ुल्म को इजाद (evolve) किया करता है
सबसे पहले वो मुझे याद किया करता है
कुछ अज़ब लुत्फ़ से बेदाद किया करता है
बाल-ओ-पर (feathers) नोच के आज़ाद किया करता है
शब-ए-हिज्र वो दम-ब-दम याद आये
बहुत याद आकर भी कम याद आये
अदू (Rivals) उनको बेहर-ए-करम याद आये
सितम आज़माने को हम याद आये
ये कैसा भी गुज़रा है आलम के पहरों
न तुम याद आये न हम याद आये
हमहीं वो मुजस्सम-ए-वफ़ा (personification of faithfulness) हैं के जिनको
तेरे सितम भी ब-तर्ज़-ए (transcribed as) करम याद आये
'शहजि' आज तनहा चमन में गए थे
बहुत उनके नख्श-ए-कदम याद आये |
Moazzam Jah, Walashan Shahzada Nawab Mir Sir Shuja’at ‘Ali Khan Siddiqi Bahadur, KCIE (1907 – 1987), was the son of the last Nizam of Hyderabad, Mir Osman Ali Khan, Asaf Jah VII, and his first wife Dulhan Pasha Begum. He married Princess Niloufer, one of the last princesses of the Ottoman empire, and represents the extinction of a line that held sway in the Deccan of India for 200 years.
This son of the last Nizam was a poet who wrote under the pen name Shahji, or sometimes Shahji Hyderabadi. Here, Farid Ayaz and Company render one of his compositions.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें