https://youtu.be/g9Ky7176QDA
दरसन गोविन्द जी को।
अली म्हाणे लागे वृन्दावन नीको।।
निर्मल नीर बहत यमुना को,
भोजन दूध-दही को।
अली म्हाणे लागे वृन्दावन नीको।।
रत्न सिंहासन आप विराजे,
मुकुट धर्यो तुलसी को।
अली म्हाणे लागे वृन्दावन नीको।।
कुंजन-कुंजन फिरत राधिका,
सब्द सुनत मुरली को।
अली म्हाणे लागे वृन्दावन नीको।।
'मीरा' के प्रभु गिरधर नागर,
भजन बिना नर फीको।
अली म्हाणे लागे वृन्दावन नीको।।
अली म्हाणे लागे वृन्दावन नीको।
घर-घर तुलसी, ठाकुर सेवा, दरसन गोविन्द जी को।
अली म्हाणे लागे वृन्दावन नीको।।
निर्मल नीर बहत यमुना को,
भोजन दूध-दही को।
अली म्हाणे लागे वृन्दावन नीको।।
रत्न सिंहासन आप विराजे,
मुकुट धर्यो तुलसी को।
अली म्हाणे लागे वृन्दावन नीको।।
कुंजन-कुंजन फिरत राधिका,
सब्द सुनत मुरली को।
अली म्हाणे लागे वृन्दावन नीको।।
'मीरा' के प्रभु गिरधर नागर,
भजन बिना नर फीको।
अली म्हाणे लागे वृन्दावन नीको।।
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