हिंदी भावानुवाद : अरुण मिश्र
आओ हे श्यामल ! आओ हे सुन्दर !
लाओ निज संग-सुधा; तापहर, तृषाहर।
तक रही आकाश, धरती विरहिणी,
व्यथित उर व्याकुल बिछाए।
तमाल कुञ्जों की सजल छाया घिरे पथ में,
जग रही नयनों में करुणा रागिनी।
गूंथ रक्खी हैं बकुल कलियाँ,
मिलन की वंशी बजाती निज अजिर में।
लाओ तुम साथ अपनी मन्दिरा;
बजे चञ्चल नृत्य में फिर छन्द-लय।
बजे कंकण, बजे किंकिणि, बजे नूपुर
और हों मञ्जीर झंकृत रुनक-झुन।।
LYRICS :
आओ हे श्यामल ! आओ हे सुन्दर !
लाओ निज संग-सुधा; तापहर, तृषाहर।
तक रही आकाश, धरती विरहिणी,
व्यथित उर व्याकुल बिछाए।
तमाल कुञ्जों की सजल छाया घिरे पथ में,
जग रही नयनों में करुणा रागिनी।
गूंथ रक्खी हैं बकुल कलियाँ,
मिलन की वंशी बजाती निज अजिर में।
लाओ तुम साथ अपनी मन्दिरा;
बजे चञ्चल नृत्य में फिर छन्द-लय।
बजे कंकण, बजे किंकिणि, बजे नूपुर
और हों मञ्जीर झंकृत रुनक-झुन।।
LYRICS :
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें