https://youtu.be/UnGEvqZ75D8
निम्बुवा तले डोला रख दे मुसाफिर
आई सावन की बहार रे~!~
अपने महल में मैं झूला झूलत थी
सैय्यां के आये कहार रे
ऐ ऋरी सखी झूला झूलने ना पाई
ले चले डोलिया कहार रे
अपने महल में मैं गुड़िया खेलत थी
गुड़िया खेलत थी
सैय्यां के आये कहार रे
ऐ री सखी गुड़िया खेलहुँ ना पाई
ले चले डोलिया कहार रे
निम्बुवा तले डोला रख दे मुसाफिर
आई सावन की बहार रे~!~
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