शनिवार, 13 फ़रवरी 2021

पहले जिस चीज़ को देखा वो फ़ज़ा तेरी थी... (नज़्म 'वतन' का अंश) / 'जोश' मलीहाबादी (१८९८ -१९८२) / गायन : कविता सेठ

 https://youtu.be/lI4kFQNSiuo

'जोश' मलीहाबादीशब्बीर अहमद हसन ख़ाँ (१८९८ -१९८२)
बीसवीं सदी के प्रमुख परंपरा-विरोधीग़ज़ल-विरोधी और प्रगतिशील विचारों 
वाले शाइरों में शामिल। मलीहाबाद (लखनऊ, उत्तर प्रदेशके शाइरों के घराने 
में आँखें खोलीं। 13-14 साल की म्र से शाइरी का आग़ाज़। आज़ादी की लड़ाई 
के नेताओं विशेषकर नेहरू से गहरे संबंध। १९५४ में पद्मभूषण से सम्मानित  
आज़ादी के बा १९५८ में पाकिस्तान चले गए और वहीं १९८२ में देहांत हुआ। 
पहले जिस चीज़ को देखा वो फ़ज़ा तेरी थी... (नज़्म 'वतन' का अंश)

पहले जिस चीज़ को देखा वो फ़ज़ा तेरी थी

पहले जो कान में आई वो सदा तेरी थी

पालना जिस ने हिलाया वो हवा तेरी थी

जिस ने गहवारे में चूमा वो सबा तेरी थी

अव्वलीं रक़्स हवा मस्त घटाएँ तेरी

भीगी हैं अपनी मसें आब-ओ-हवा में तेरी

वतन आज से क्या हम तिरे शैदाई हैं

आँख जिस दिन से खुली तेरे तमन्नाई हैं

मुद्दतों से तिरे जल्वों के तमाशाई हैं

हम तो बचपन से तिरे आशिक़-ओ-सौदाई हैं

भाई तिफ़्ली से हर इक आन जहाँ में तेरी

बात तुतला के जो की भी तो ज़बाँ में तेरी

हुस्न तेरे ही मनाज़िर ने दिखाया हम को

तेरी ही सुब्ह के नग़्मों ने जगाया हम को

तेरे ही अब्र ने झूलों में झुलाया हम को

तेरे ही फूलों ने नौ-शाह बनाया हम को

ख़ंदा-ए-गुल की ख़बर तेरी ज़बानी आई

तेरे बाग़ों में हवा खा के जवानी आई

तुझ से मुँह मोड़ के मुँह अपना दिखाएँगे कहाँ

घर जो छोड़ेंगे तो फिर छावनी छाएँगे कहाँ

बज़्म-ए-अग़्यार में आराम ये पाएँगे कहाँ

तुझ से हम रूठ के जाएँ भी तो जाएँगे कहाँ

तेरे हाथों में है क़िस्मत का नविश्ता अपना

किस क़दर तुझ से भी मज़बूत है रिश्ता अपना

वतन जोश है फिर क़ुव्वत-ए-ईमानी में

ख़ौफ़ क्या दिल को सफ़ीना है जो तुग़्यानी में

दिल से मसरूफ़ हैं हर तरह की क़ुर्बानी में

महव हैं जो तिरी कश्ती की निगहबानी में

ग़र्क़ करने को जो कहते हैं ज़माने वाले

मुस्कुराते हैं तिरी नाव चलाने वाले

हम ज़मीं को तिरी नापाक होने देंगे

तेरे दामन को कभी चाक होने देंगे

तुझ को जीते हैं तो ग़मनाक होने देंगे

ऐसी इक्सीर को यूँ ख़ाक होने देंगे

जी में ठानी है यही जी से गुज़र जाएँगे

कम से कम वादा ये करते हैं कि मर जाएँगे

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