शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

उस ने पूछा भी नहीं मैं ने बताया भी नहीं.../ कलीम आजिज़ (१९२०-२०१५)

 https://youtu.be/hJzULt9quL0 

Kalim Aajiz was an Indian writer of Urdu literature 
and a famous poet. An academic educator and chairman 
of the Urdu Advisory Committee of the Government of 
Bihar. He was a recipient of the fourth highest Indian 
civilian honour of Padma Shri from the Government of 
India in 1989.
Born1920, Telhara
Died14 February 2015, Hazaribagh
AwardsPadma Shri Award in Literature & Education (1989)


कलीम आजिज़  (१९२०-२०१५) : दो ग़ज़लें 
मत बुरा उस को कहो गरचे वो अच्छा भी नहीं
वो होता तो ग़ज़ल मैं कभी कहता भी नहीं
जानता था कि सितमगर है मगर क्या कीजे
दिल लगाने के लिए और कोई था भी नहीं
जैसा बे-दर्द हो वो फिर भी ये जैसा महबूब
ऐसा कोई हुआ और कोई होगा भी नहीं
वही होगा जो हुआ है जो हुआ करता है
मैं ने इस प्यार का अंजाम तो सोचा भी नहीं
हाए क्या दिल है कि लेने के लिए जाता है
उस से पैमान-ए-वफ़ा जिस पे भरोसा भी नहीं
बारहा गुफ़्तुगू होती रही लेकिन मिरा नाम
उस ने पूछा भी नहीं मैं ने बताया भी नहीं
तोहफ़ा ज़ख़्मों का मुझे भेज दिया करता है
मुझ से नाराज़ है लेकिन मुझे भूला भी नहीं
दोस्ती उस से निबह जाए बहुत मुश्किल है
मेरा तो वा'दा है उस का तो इरादा भी नहीं
मेरे अशआर वो सुन सुन के मज़े लेता रहा
मैं उसी से हूँ मुख़ातिब वो ये समझा भी नहीं
मेरे वो दोस्त मुझे दाद-ए-सुख़न क्या देंगे
जिन के दिल का कोई हिस्सा ज़रा टूटा भी नहीं
मुझ को बनना पड़ा शाइ'र कि मैं अदना ग़म-ए-दिल
ज़ब्त भी कर सका फूट के रोया भी नहीं
शाइरी जैसी हो 'आजिज़' की भली हो कि बुरी
आदमी अच्छा है लेकिन बहुत अच्छा भी नहीं
इस नाज़ इस अंदाज़ से तुम हाए चलो हो 
रोज़ एक ग़ज़ल हम से कहलवाए चलो हो 
रखना है कहीं पाँव तो रक्खो हो कहीं पाँव 
चलना ज़रा आया है तो इतराए चलो हो 
दीवाना-ए-गुल क़ैदी-ए-ज़ंजीर हैं और तुम 
क्या ठाट से गुलशन की हवा खाए चलो हो 
मय में कोई ख़ामी है न साग़र में कोई खोट 
पीना नहीं आए है तो छलकाए चलो हो
 
हम कुछ नहीं कहते हैं कोई कुछ नहीं कहता 
तुम क्या हो तुम्हीं सब से कहलवाए चलो हो 
ज़ुल्फ़ों की तो फ़ितरत ही है लेकिन मिरे प्यारे 
ज़ुल्फ़ों से ज़ियादा तुम्हीं बल खाए चलो हो 
वो शोख़ सितमगर तो सितम ढाए चले है 
तुम हो कि 'कलीम' अपनी ग़ज़ल गाए चलो हो
 

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