मंगलवार, 9 फ़रवरी 2021

वे सूरतें इलाही किस मुल्क बसतियाँ हैं...(प्रारम्भिक अवस्था में उर्दू ) / मिर्ज़ा मोहम्मद रफ़ी 'सौदा' (१७१३-१७८१) / गायन : कविता सेठ

 https://youtu.be/VYi_7mPEwCI 

Mirza Mohammad rafi 'Sauda' (1713–1781) was an Urdu poet 
in DelhiIndia. He is known for his Ghazals and Urdu Qasidas
He was born in 1713 in Shahjahanabad (i.e. Old Delhi), where he 
was also brought up. He moved to Farrukhabad (with Nawab 
Bangash), and lived there from 1757 to about 1770.In 1771 he 
moved to the court of Nawab of Awadh (then in Faizabad
and remained there until his death. When Lucknow became 
the state capital, he came there with Nawab Shujauddaula
He was also Ustad of Shujauddaulla. Nawab Āṣif ud-Daulah 
gave him title of Malkushshu'ara and annual pension 
of Rs 6,000.

He died in 1781 in Lucknow.

अपने विकास के प्रारम्भिक अवस्था में उर्दू भाषा 

वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं...


वे सूरतें इलाही किस मुल्क बसतियाँ हैं

अब देखने को जिन के आँखें तरसतियाँ हैं

आया था क्यूँ अदम में क्या कर चला जहाँ में

ये मर्ग-ओ-ज़ीस्त तुझ बिन आपस में हँसतियाँ हैं

क्यूँकर हो मुशब्बक शीशा सा दिल हमारा

उस शोख़ की निगाहें पत्थर में धँसतियाँ हैं

बरसात का तो मौसम कब का निकल गया पर

मिज़्गाँ की ये घटाएँ अब तक बरसतियाँ हैं

लेते हैं छीन कर दिल आशिक़ का पल में देखो

ख़ूबाँ की आशिक़ों पर क्या पेश-दस्तियाँ हैं

इस वास्ते कि हैं ये वहशी निकल जावें

आँखों को मेरी मिज़्गाँ डोरों से कसतियाँ हैं

क़ीमत में उन के गो हम दो जग को दे चुके अब

उस यार की निगाहें तिस पर भी सस्तियाँ हैं

उन ने कहा ये मुझ से अब छोड़ दुख़्त-ए-रज़ को

पीरी में दिवाने ये कौन मस्तियाँ हैं

जब मैं कहा ये उस से 'सौदा' से अपने मिल के

इस साल तू है साक़ी और मय-परस्तियाँ हैं

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