शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021

ला फिर इक बार वही बादा ओ जाम ऐ साक़ी.../ अल्लामा इक़बाल / शबनम मजीद

 https://youtu.be/oTlyDtN_dVE  

मुहम्मद इक़बाल मसऊदी (9 नवम्बर 1877 – 21 अप्रैल 1938) ,अविभाजित भारत के 
प्रसिद्ध कवि, नेता और दार्शनिक थे। उर्दू और फ़ारसी में इनकी शायरी को आधुनिक काल की 
सर्वश्रेष्ठ शायरी में गिना जाता है।इकबाल के दादा सहज सप्रू हिंदू कश्मीरी पंडित थे जो बाद में 
सिआलकोट आ गए। इनकी प्रमुख रचनाएं हैं: असरार-ए-ख़ुदीरुमुज़-ए-बेख़ुदी और बंग-ए-दारा
जिसमें देशभक्तिपूर्ण तराना-ए-हिन्द (सारे जहाँ से अच्छा) शामिल है। फ़ारसी में लिखी इनकी 
शायरी ईरान और अफ़ग़ानिस्तान में बहुत प्रसिद्ध है, जहाँ इन्हें इक़बाल-ए-लाहौर कहा जाता है। 
इन्होंने इस्लाम के धार्मिक और राजनैतिक दर्शन पर काफ़ी लिखा है। इन्हें अल्लामा इक़बाल 
(विद्वान इक़बाल), मुफ्फकिर-ए-पाकिस्तान (पाकिस्तान का विचारक), शायर-ए-मशरीक़ 
(पूरब का शायर) और हकीम-उल-उम्मत (उम्मा का विद्वान) भी कहा जाता है।

ला फिर इक बार वही बादा जाम साक़ी

हाथ जाए मुझे मेरा मक़ाम साक़ी

तीन सौ साल से हैं हिन्द के मय-ख़ाने बंद

अब मुनासिब है तिरा फ़ैज़ हो आम साक़ी

मेरी मीना-ए-ग़ज़ल में थी ज़रा सी बाक़ी

शेख़ कहता है कि है ये भी हराम साक़ी

शेर मर्दों से हुआ बेश-ए-तहक़ीक़ तही

रह गए सूफ़ी मुल्ला के ग़ुलाम साक़ी

इश्क़ की तेग़-ए-जिगर-दार उड़ा ली किस ने

इल्म के हाथ में ख़ाली है नियाम साक़ी

सीना रौशन हो तो है सोज़-ए-सुख़न ऐन-ए-हयात

हो रौशन तो सुख़न मर्ग-ए-दवाम साक़ी

तू मिरी रात को महताब से महरूम रख

तिरे पैमाने में है माह-ए-तमाम साक़ी

Shabnam Majeed is a Pakistani singer. She has been described as 'one of the most prolific playback 

singers of Lollywood' by The Express Tribune, with numerous 

songs and solo albums under her belt. Her remixes became 

particularly popular as she went on to represent Pakistan 

across the world.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें