https://youtu.be/9_r06RzwGck
अब मैं नाच्यौ बहुत गुपाल।
काम-क्रोध कौ पहिरि चोलना, कंठ बिषय की माल॥
महामोह के नूपुर बाजत, निंदा सबद रसाल।
भरम भयो मन भयो, पखावज, चलत असंगत चाल॥
तृष्ना नाद करति घट भीतर, नाना विधि दै ताल।
माया कौ कटि फेंटा बाँध्यौ, लोभ-तिलक दियौ भाल॥
कोटिक कला काछि दिखराई जल-थल सुधि नहिं काल।
सूरदास की सबै अबिद्या दूरि करौ नँदलाल॥
इस पद में सूरदास जी ने माया-तृष्णा में लिपटे मनुष्य की
व्यथा का सजीव चित्रण किया है। वह कहते हैं- हे गोपाल!
अब मैं बहुत नाच चुका। काम और क्रोध का जामा पहनकर,
विषय (चिन्तन) की माला गले में डालकर, महामोहरूपी नूपुर
बजाता हुआ, जिनसे निन्दा का रसमय शब्द निकलता है
(महामोहग्रस्त होने से निन्दा करने में ही सुख मिलता रहा),
नाचता रहा। भ्रम (अज्ञान) से भ्रमित मन ही पखावज (मृदंग)
बना। कुसङ्गरूपी चाल मैं चलता हूँ। अनेक प्रकार के ताल देती
हुई तृष्णा हृदय के भीतर नाद (शब्द) कर रही है। कमर में माया
का फेटा (कमरपट्टा) बाँध रखा है और ललाट पर लोभ का तिलक
लगा लिया है। जल और स्थल में (विविध) स्वाँग धारणकर
(अनेकों प्रकार से जन्म लेकर) कितने समय से यह तो मुझे
स्मरण नहीं (अनादि काल से)- करोड़ों कलाएँ मैंने भली प्रकार
दिखलायी हैं (अनेक प्रकार के कर्म करता रहा हूँ)। हे नन्दलाल!
अब तो सूरदास की सभी अविद्या (सारा अज्ञान) दूर कर दो।
माया के वशीभूत मनुष्य की स्थिति का इस पद के माध्यम से
सूरदास जी ने सांगोपांग चित्रण किया है। सांसारिक प्रपंचों में
पड़कर लक्ष्य से भटके जीवों का एकमात्र सहारा ईश्वर ही है।
व्यथा का सजीव चित्रण किया है। वह कहते हैं- हे गोपाल!
अब मैं बहुत नाच चुका। काम और क्रोध का जामा पहनकर,
विषय (चिन्तन) की माला गले में डालकर, महामोहरूपी नूपुर
बजाता हुआ, जिनसे निन्दा का रसमय शब्द निकलता है
(महामोहग्रस्त होने से निन्दा करने में ही सुख मिलता रहा),
नाचता रहा। भ्रम (अज्ञान) से भ्रमित मन ही पखावज (मृदंग)
बना। कुसङ्गरूपी चाल मैं चलता हूँ। अनेक प्रकार के ताल देती
हुई तृष्णा हृदय के भीतर नाद (शब्द) कर रही है। कमर में माया
का फेटा (कमरपट्टा) बाँध रखा है और ललाट पर लोभ का तिलक
लगा लिया है। जल और स्थल में (विविध) स्वाँग धारणकर
(अनेकों प्रकार से जन्म लेकर) कितने समय से यह तो मुझे
स्मरण नहीं (अनादि काल से)- करोड़ों कलाएँ मैंने भली प्रकार
दिखलायी हैं (अनेक प्रकार के कर्म करता रहा हूँ)। हे नन्दलाल!
अब तो सूरदास की सभी अविद्या (सारा अज्ञान) दूर कर दो।
माया के वशीभूत मनुष्य की स्थिति का इस पद के माध्यम से
सूरदास जी ने सांगोपांग चित्रण किया है। सांसारिक प्रपंचों में
पड़कर लक्ष्य से भटके जीवों का एकमात्र सहारा ईश्वर ही है।
सूरदास का जन्म १४७८ ईस्वी में रुनकता नामक गाँव में हुआ।
यह गाँव मथुरा-आगरा मार्ग के किनारे स्थित है। कुछ विद्वानों
का मत है कि सूर का जन्म सीही नामक ग्राम में एक निर्धन
सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बाद में ये आगरा और
मथुरा के बीच गऊघाट पर आकर रहने लगे थे। सूरदास के पिता
रामदास गायक थे। सूरदास के जन्मांध होने के विषय में मतभेद
है। प्रारंभ में सूरदास आगरा के समीप गऊघाट पर रहते थे। वहीं
उनकी भेंट श्री वल्लभाचार्य से हुई और वे उनके शिष्य बन गए।
वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षित कर के कृष्णलीला के
पद गाने का आदेश दिया। सूरदास की मृत्यु गोवर्धन के निकट
पारसौली ग्राम में १५८० ईस्वी में हुई।
सूरदास का नाम कृष्ण भक्ति की अजस्र धारा को प्रवाहित करने वाले भक्त कवियों में सर्वोपरि है। हिंन्दी साहित्य में भगवान
श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक और ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि महात्मा
सूरदास हिंदी साहित्य के सूर्य माने जाते हैं। हिंदी कविता कामिनी
के इस कमनीय कांत ने हिंदी भाषा को समृद्ध करने में जो योगदान
दिया है, वह अद्वितीय है। सूरदास हिंन्दी साहित्य में भक्ति काल
के सगुण भक्ति शाखा के कृष्ण-भक्ति उपशाखा के महान कवि हैं।
Sandhya Mukherjee (born 4 October 1931), also known as
Sandhya Mukhopadhyay, is an Indian playback singer and
musician, specialising in Bengali music. She is the prima dona
of Bengali playback industry. No other female vocalist has atained
her caliber in Bengali music industry. She received Banga Bibhushan,
the highest civilian honour od the Indian state of West Bengal in 2011,
and National Film Award for Best Female Playback Singer for her songs
in the films Jay Jayanti and Nishi Padma in the year 1970.
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