बुधवार, 24 फ़रवरी 2021

वेदानुद्धरते जगन्निवहते...(जयदेव का दशावतार स्तोत्र) / प्रस्तुति : शिवश्री स्कन्दप्रसाद

https://youtu.be/_W_CvsBeYlE 

 जयदेव का दशावतार स्तोत्र -

वेदानुद्धरते जगन्निवहते भूगोलमुद्बिभ्रते
दैत्यं दारयते बलिं छलयते क्षत्रक्षयं कुर्वते।
पौलस्त्यं जयते हलं कुलयते कारुण्यमातन्वते
म्लेच्छान् मूर्च्छयते दशाकृतिकृते कृष्णाय तुभ्यं नमः॥

Extricator of Vedas, Upholder of the world, Savior of Earth, 
Tearer of the Demon Hiranya-kasipu, Deceiver of Bali, 
Destroyer of the Kings, Conqueror of Ravana, 
Wielder of the plough, Advocate of compassion and 
Destroyer, who took incarnation of ten forms, 
O Krishna my obeisances to you. 

श्रीकृष्ण! आपने मत्स्य रूप धारणकर प्रलय समुन्द्र में डूबे हवे वेदों का 
उद्धार किया, समुन्द्र-मन्थन के समय महाकूर्म बनकर पृथ्वीमण्डल को 
पीठपर धारण किया, महावराह के रूप में कारणार्णव में डूबी हुई 
पृथ्वी का उद्धार किया, नृसिंह के रूप में हिरण्यकशिपु आदि दैत्यों का 
विदारण किया, वामन रूप में राजा बलि को छला, परशुराम के रूप में 
क्षत्रिय जाति का संहार किया, श्रीराम के रूप में महाबली रावण पर 
विजय प्राप्त की, श्री बलराम के रूप में हल को शस्त्ररूप में धारण किया, 
भगवान बुद्ध के रूप में करुणा का विस्तार किया था तथा कल्कि के 
रूप में म्लेच्छों को मूर्छित करेंगे। इस प्रकार दशावतार के रूप में प्रकट 
आपकी मैं वन्दना करना हूँ।

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