है वसंत जीवन का उत्सव...
-अरुण मिश्र .
कालचक्र है सतत परिभ्रमित,
बदल-बदल ऋतुओं के चोले।
कभी शुष्क है, कभी आर्द्र है;
आतप-शीत रंग बहु घोले।।
जीर्ण-पत्र सब झरे द्रुमों से,
शिशिर-गलित, हेमन्त-विदारित।
फिर वसंत ने ली अँगड़ाई,
फिर से आम्र, मंजरी-भारित।।
पत्रोत्कंठित एक-एक तरु,
विटप-विटप नव-पल्लव-भूषित।
मन्मथ-दुन्दुभि सुन वसंत की,
प्रकृति, सृजन-आतुर मन-हर्षित।।
नवल हरित पत्रों की चूड़ी,
बाँह-बाँह भर पहने डाली।
मेंहदी रची हथेली, पल्लव;
है वसंत की छटा निराली।।
कोयल की मीठी तानें हैं;
विहगों के मनहर हैं कलरव।
हृदयों में उल्लास भर रहा,
है वसंत, जीवन का उत्सव।।
*
(पूर्वप्रकाशित)
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