https://youtu.be/35Ldg1OyT1k
महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्य रचित कृष्णाष्टकम्
कृष्णाष्टकं में श्रीराधारानी और श्रीकृष्ण के सनातन प्रेम का
मर्मस्पर्शी वर्णन महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्य जी द्वारा किया गया है।
तात्त्विक दृष्टि से एक होते हुए भी श्रीराधारानी और श्रीकृष्ण भक्तों
के सुख हेतु प्रेम लीला करने के लिए जैसे दो हो जाते हैं। श्रीकृष्ण को
शीघ्र प्रसन्न करने के लिए श्रीराधारानी का और श्रीराधारानी को शीघ्र
प्रसन्न करने के लिए श्रीकृष्ण का भजन करना चाहिए क्योंकि दोनों
ही दूसरे का ज्यादा ध्यान रखते हैं। मनुष्य जीवन का एकमात्र उद्देश्य
इनके चरणकमलों की भक्ति प्राप्त करना ही है और इसके लिए अनन्य
प्रेम के अतिरिक्त कोई मार्ग नहीं है। कृष्णाष्टकं को युगलाष्टकं भी कहा
जाता है क्योंकि इसके प्रत्येक पद में श्रीकृष्ण और श्रीराधारानी दोनों का ही
वर्णन किया गया है।
तात्त्विक दृष्टि से एक होते हुए भी श्रीराधारानी और श्रीकृष्ण भक्तों
के सुख हेतु प्रेम लीला करने के लिए जैसे दो हो जाते हैं। श्रीकृष्ण को
शीघ्र प्रसन्न करने के लिए श्रीराधारानी का और श्रीराधारानी को शीघ्र
प्रसन्न करने के लिए श्रीकृष्ण का भजन करना चाहिए क्योंकि दोनों
ही दूसरे का ज्यादा ध्यान रखते हैं। मनुष्य जीवन का एकमात्र उद्देश्य
इनके चरणकमलों की भक्ति प्राप्त करना ही है और इसके लिए अनन्य
प्रेम के अतिरिक्त कोई मार्ग नहीं है। कृष्णाष्टकं को युगलाष्टकं भी कहा
जाता है क्योंकि इसके प्रत्येक पद में श्रीकृष्ण और श्रीराधारानी दोनों का ही
वर्णन किया गया है।
●कृष्णप्रेममयी राधा
राधाप्रेममयो हरिः ।
जीवनेन धने नित्यं
राधाकृष्णगतिर्मम ॥ १ ॥
~श्रीराधारानी श्रीकृष्ण प्रेम से ओत प्रोत हैं और श्रीकृष्ण
श्रीराधारानी के प्रेम से । जीवन के नित्य धन स्वरुप
श्रीराधाकृष्ण मेरा आश्रय हों ॥१॥
●कृष्णस्य द्रविणं राधा
राधायाः द्रविणं हरिः ।
जीवनेन धने नित्यं
राधाकृष्णगतिर्मम ॥ २ ॥
राधायाः द्रविणं हरिः ।
जीवनेन धने नित्यं
राधाकृष्णगतिर्मम ॥ २ ॥
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