https://youtu.be/eXB7cYJtgOs
अजब अंदाज़ तुझ को नरगिस-ए- मस्ताना आता है
के हर हुशियार बनने को यहाँ दीवाना आता है
के हर हुशियार बनने को यहाँ दीवाना आता है
कोई ज़ाहिद हो, वाहिद हो, बे-ताबाना आता है
समझ में जिसकी राज़-ए-बादा-ओ-पैमाना आता है
वही मस्जिद से उठ कर ज़ानिब-ए-मैख़ाना आता है
समझ में जिसकी राज़-ए-बादा-ओ-पैमाना आता है
वही मस्जिद से उठ कर ज़ानिब-ए-मैख़ाना आता है
हक़ीक़त में निग़ाहें देख लेती हैं हक़ीक़त को
छुपा सकते नहीं कस्रत के परदे रंग-ए-वहदत को
समझते हैं मोहब्बत वाले आदाब-ए-मोहब्बत को
ज़माना क्या समझ सकता है उसके कुफ़्र-ए-उल्फ़त को
नज़र बुत में भी जिसको जल्वा-ए-जानाना आता है
करी है दैर में वह सजदा रेज़ी ऐन मस्ती में
मुझे काफ़िर लगे कहने मुसलमानों की बस्ती में
नज़र आती नहीं कुछ अपनी हस्ती, अपनी हस्ती में
कुछ ऐसा खो गया हूँ दिल के हाथों बुत परस्ती में
जिधर जाता हूँ मेरे सामने बुतख़ाना आता है
हर इक गफ्फार को बाक़िर दुर-ए-इरफ़ां नहीं मिलता
नहीं इस राह में मक़सूद-ए-दिल आसां नहीं मिलता
कभी गुलशन में कांटा बे-गुल-ए- ख़न्दां नहीं मिलता
न गुज़रे कुफ़्र से जब तक कभी ईमां नहीं मिलता
के पहले तो हरम की राह में बुतख़ाना आता है
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