बुधवार, 19 मई 2021

आत्मा त्वम् गिरिजा मतिः.../ आदि शंकराचार्य / गैब्रिएला बर्नेल / काव्य भावानुवाद : अरुण मिश्र

 https://youtu.be/GcYqj9SVjVg  

स्वर : गैब्रिएला बर्नेल 

शिव मानस पूजा स्तुति - आदि शंकराचार्य (७८८ - ८२०)

आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं।
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः॥
संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो।
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्‌॥4॥ 

काव्य भावानुवाद : अरुण मिश्र 
हो तुम्हीं आत्मा मेरी, और गिरिजा मति मेरी। 
प्राण सहचर गण तेरे, गृह है तेरा मेरा शरीर। 
हैं तेरी पूजा ही भगवन,  मेरे सारे विषय-भोग 
और निद्रा है मेरी,  वस्तुतः तुझ में समाधि 
प्रत्येक पद संचार,  तेरी ही प्रदक्षिणा का प्रक्रम 
और शब्दोच्चार हर,  है तेरी ही स्तुति प्रभु 
कर्म जो-जो भी करूँ,  हैं सकल आराधन तेरे 
तुम्हीं तुम मुझमें, निहित तुझमें अखिल उपक्रम मेरे 

अर्थ :
हे शंकरजी, मेरी आत्मा आप हैं। मेरी बुद्धि आपकी शक्ति पार्वतीजी हैं। 
मेरे प्राण आपके गण हैं। मेरा यह पंच भौतिक शरीर आपका मंदिर है। 
संपूर्ण विषय भोग की रचना आपकी पूजा ही है। मैं जो सोता हूं, वह आपकी ध्यान समाधि है। 
मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है। 
मेरी वाणी से निकला प्रत्येक उच्चारण आपके स्तोत्र व मंत्र हैं। 
इस प्रकार मैं आपका भक्त जिन-जिन कर्मों को करता हूं, वह आपकी आराधना ही है।

आदि शंकर (संस्कृत आदिशङ्कराचार्यः
ये भारत के एक महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक थे। उन्होने अद्वैत वेदान्त को 
ठोस आधार प्रदान किया। भगवद्गीताउपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी हुई 
इनकी टीकाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। उन्होंने सांख्य दर्शन का प्रधानकारणवाद और 
मीमांसा दर्शन के ज्ञान-कर्मसमुच्चयवाद का खण्डन किया। इन्होंने भारतवर्ष में 
चार कोनों में चार मठों की स्थापना की थी जो अभी तक बहुत प्रसिद्ध और 
पवित्र माने जाते हैं और जिन पर आसीन संन्यासी 'शंकराचार्य' कहे जाते हैं। 
वे चारों स्थान ये हैं- (१) ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम, (२) श्रृंगेरी पीठ, (३) द्वारिका 
शारदा पीठ और (४) पुरी गोवर्धन पीठ। इन्होंने अनेक विधर्मियों को भी अपने धर्म 
में दीक्षित किया था। ये शंकर के अवतार माने जाते हैं। इन्होंने ब्रह्मसूत्रों की बड़ी ही 
विशद और रोचक व्याख्या की है।
शंकर आचार्य का जन्म ७८८ ई में केरल में कालपी अथवा 'काषल' नामक ग्राम में 
हुआ था। इनके पिता का नाम शिवगुरु भट्ट और माता का नाम सुभद्रा था। बहुत दिन 
तक सपत्नीक शिव को आराधना करने के अनंतर शिवगुरु ने पुत्र-रत्न पाया था, अत: 
उसका नाम शंकर रखा। जब ये तीन ही वर्ष के थे तब इनके पिता का देहांत हो गया। 
ये बड़े ही मेधावी तथा प्रतिभाशाली थे। छह वर्ष की अवस्था में ही ये प्रकांड पंडित हो 
गए थे और आठ वर्ष की अवस्था में इन्होंने संन्यास ग्रहण किया था। इनके संन्यास 
ग्रहण करने के समय की कथा बड़ी विचित्र है। कहते हैं, माता एकमात्र पुत्र को संन्यासी 
बनने की आज्ञा नहीं देती थीं। तब एक दिन नदीकिनारे एक मगरमच्छ ने शंकराचार्यजी 
का पैर पकड़ लिया तब इस वक्त का फायदा उठाते शंकराचार्यजी ने अपने माँ से कहा 
" माँ मुझे सन्यास लेने की आज्ञा दो नही तो यह मगरमच्छ मुझे खा जायेगा ", इससे 
भयभीत होकर माता ने तुरंत इन्हें संन्यासी होने की आज्ञा प्रदान की ; और आश्चर्य की 
बात है की, जैसे ही माता ने आज्ञा दी वैसे तुरन्त मगरमच्छ ने शंकराचार्यजी का पैर छोड़ 
दिया। और इन्होंने गोविन्द नाथ से संन्यास ग्रहण किया।
पहले ये कुछ दिनों तक काशी में रहे, और तब इन्होंने विजिलबिंदु के तालवन में 
मण्डन मिश्र को सपत्नीक शास्त्रार्थ में परास्त किया। इन्होंने समस्त भारतवर्ष में 
भ्रमण करके बौद्ध धर्म को मिथ्या प्रमाणित किया तथा वैदिक धर्म को पुनरुज्जीवित 
किया। कुछ बौद्ध इन्हें अपना शत्रु भी समझते हैं, क्योंकि इन्होंने बौद्धों को कई बार 
शास्त्रार्थ में पराजित करके वैदिक धर्म की पुन: स्थापना की।
३२ वर्ष की अल्प आयु में सम्वत ८२० ई मेंकेदारनाथ के समीप स्वर्गवासी हुए थे।

Gabriella Burnel :

Gabriella first came into contact with Sanskrit as a little girl hearing it from 
her parents. She went on to study it at school, at the University of Oxford, 
and continues her learning to this day both in London and with yearly visits 
to her teachers in India. The study of Sanskrit enriches her life, through the 
wealth of its magnificent scriptural texts and the sounds of the language. 
Gabriella sounds Sanskrit daily and credits this with helping her navigate 
the vicissitudes of existence!
Alongside Sanskrit, Gabriella sings, teaches Alexander Technique and Yoga, 
and leads monthly Vedic Chanting / Kirtan sessions in London and beyond.

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