गुरुवार, 6 मई 2021

आऊंगा ना जाऊंगा मरूंगा ना जिवुंगा.../ कबीर दास जी / प्रस्तुति : मौलवी हैदर हसन वेहरांवाले क़व्वाल एवं पार्टी

https://youtu.be/eWPMY16qoq0  
संगीत के माध्यम से आध्यात्म की यात्रा :

इस क़व्वाली में मौलवी हैदर हसन साहब ने संत कबीर की रचना के साथ 
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही (१४५६-१५३७), बेदम शाह वारसी (१८७६-१९३६), 
एवं मशहूर शायर शकील बदायूंनी (१९१६-१९७०) की काव्य पंक्तियों का 
सुन्दर सम्मिश्रण कर के संगीत, भाव एवं आध्यात्म का एक अद्भुत गुलदस्ता 
तैयार किया है, जिसकी महक आत्मा को असीम आनंद प्रदान करती है। 

"मौलवी हैदर हसन, पाकिस्तान के प्रसिद्ध सूफ़ी क़व्वाल थे, जिनका निधन 
गत १८ अप्रैल, २०१९ को हो गया है। यह रिकॉर्डिंग संभवतः वर्ष २०१५ की है। "

आऊंगा ना जाऊंगा मरूंगा ना जिवुंगा...

कबीर दास जी 

प्रस्तुति : मौलवी हैदर हसन वेहरांवाले क़व्वाल एवं पार्टी 
(मौलवी अहमद हसन वेहरांवाले के वंशज जो विभाजन के बाद 
फैसलाबाद , पाकिस्तान में बस गए। )

मुख्य स्वर : मौलवी हैदर हसन एवं ज़मीर हसन खां 

अन्य स्वर : साकिब हसन 
तबला एवं ढोल : नासिर हसन 

न फ़ना मेरी न बक़ा मेरी, मुझे ए 'शकील' न ढूँढिए। मैं किसी का हुस्न-ए-ख़्याल हूँ, मेरा कुछ वजूद-ओ-अदम नहीं।। वही ज़िन्दगी वही मरहले, वही कारवाँ वही रास्ते। मगर अपने-अपने मक़ाम पर, कभी तुम नहीं कभी हम नहीं।।


फ़ना कैसी - बक़ा कैसी, जब उसके आशना ठहरे। कभी उस घर में आ बैठे कभी इस घर में आ बैठे।।


गुफ़्त क़ुद्दूस-ए-फ़कीर-ए-दर फ़ना-ओ-दर बक़ा।
ख़ुद-ब-ख़ुद आज़ाद बूदी ख़ुद गिरफ़्तार आमदी।।


आऊंगा ना जाऊँगा, मैं मरूंगा ना जीऊंगा...


मौत क्या आके फकीरों से तुझे लेना है? मौत क्या आके फकीरों से तुझे लेना है? मरने से पहले तो यह लोग मरा करते है।


मैं तो...


आऊंगा ना जाऊँगा, मैं मरूंगा ना जीऊंगा। गुरां के शबद प्याला हरी रस पियूँगा।।


कोई पूजे मढ़ियाँ ते कोई पूजे गोरां। देखो रे बाबा, ये लूट लेंहैं चोरा।।


कोई फेरे माला ते कोई फेरे तस्बीह। देखो रे बाबा यह दोनों है तस्बीह।।


कोई जावे मक्के ते कोई जावे काशी। देखो रे बाबा, तो हाँ गल फांसी।।


कहत कबीर सुनो मोरी लोई। हम ना किसी के हमरा ना कोई।

हम जो मरेंगे , तो रोयो ना कोई।।


वो और होंगे जो जिन्हे मौत आएगी 'बेदम'। निग़ाहे-ए-यार से पायी है ज़िन्दगी मैंने।।


हम जो मरेंगे , तो रोयो ना कोई।।


जन्मना क्या ज्ञान है, मरना क्या है ज्ञान। इन दोनों से छूटना जो मुक्ति इसको जान।।


हम जो मरेंगे , तो रोयो ना कोई ..!!

5 टिप्‍पणियां:

  1. अरुण जी, आपके इस प्रयास के लिए धन्यवाद।
    आपने बड़े सटीक तरह से सारे बोल लिख दिए हैं।

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  2. बहुत बढ़िया सर जी। क्या क़व्वाली गाया है मौलवी साहब ने । वाह

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  3. अरुणजी,
    मैं आपसे परिचित नहीं हूँ। कबीर वाणी पर आपका प्रस्तुतिकरण सुंदर है, अच्छा लगा।
    में लखनऊ में रहता हूँ। आयु 86 वर्ष, अतः गलतियां होना स्वाभाविक है। मेरी इस टिप्पणी को भी इसी भाव से ले।
    श्रीदत्त शुक्ल

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  4. आदरणीय शुक्ल जी, मैं आपसे लगभग १६ वर्ष छोटा हूं। आपका स्नेह पाकर अभिभूत हूं। मैं भी लखनऊ में ही रहता हूं। 4/113, विजयन्त खण्ड, गोमती नगर। दूरभाष-9935232728

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