https://youtu.be/QMsJSBd0Fwk
शिव मानस पूजा स्तुति - आदि शंकराचार्य (७८८ - ८२०)
आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं।
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः॥
संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो।
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्॥4॥
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः॥
संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो।
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्॥4॥
काव्य भावानुवाद : अरुण मिश्र
हो तुम्हीं आत्मा मेरी, और गिरिजा मति मेरी।
प्राण सहचर गण तेरे, गृह है तेरा मेरा शरीर।
हैं तेरी पूजा ही भगवन, मेरे सारे विषय-भोग
और निद्रा है मेरी, वस्तुतः तुझ में समाधि
प्रत्येक पद संचार, तेरी ही प्रदक्षिणा का प्रक्रम
और शब्दोच्चार हर, है तेरी ही स्तुति प्रभु
कर्म जो-जो भी करूँ, हैं सकल आराधन तेरे
तुम्हीं तुम मुझमें, निहित तुझमें अखिल उपक्रम मेरे
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