शुक्रवार, 14 मई 2021

चाँद ईद का देखे..../ अरुण मिश्र

https://youtu.be/OKOoZ3yxHOg

चाँद चौदहवीं का भी, चाँद ईद का देखे । 
 ‘अरुन’ की नज़रों ने भी, क्या-क्या नज़ारे देखे।। 

 जैसे दरिया की क़शिश, ऑखों में समन्दर के। 
क़हकशां जैसे, कोई नन्हा सितारा देखे।। 

 जो थी हसरत, वो मसर्रत हो, सुकूँ में बदली। 
मैंने उन नयनों में, पल-पल नये जादू देखे।। 

 गोरी को पिउ की झलक, इन्तज़ार के लम्हे। 
याद आवें बहुत, छत पर खड़ी, एक-टक देखे।। 

 दुआयें अपनी, आसमानों को हो जायें क़ुबूल। 
बहन ने भाई, मॉं ने बच्चों के मुखड़े देखे।। 

 कर्ज़ ने स्वाद सिवइयों का कसैला है किया।
चॉंद को देखे, या ठंढा पड़ा चूल्हा देखे।। 

 सिर्फ़ देखो नहीं, इस दर्द को महसूस करो। 
तंगी हर हाल में, उम्मीद का पहलू देखे।। 
                           * 
(टिप्पणी:'रश्मिरेख'में पूर्वप्रकाशित)

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